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भुजगारबंधे परिमाणायुगमो परिमाणागमो
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३०५. परिमाणागमेण दुवि० – घे० दे० । श्रघे० सत्तर क० भुज ०प० - वडि० केत्तिया ? अता । अवत्त ० केत्तिया ? संखेज्जा । श्रयु० अवत्त ०[ अप्पद०] अता । एवमोघभंगो तिरिक्खोघं सव्व एइंदिय- सव्ववणप्फदि-रिणयोदकाय जोगि ओरालियका ० -ओरालियमि० स० - कोधादि ०४ - मदि ० -सुद० - संज०
चक्खु०- किरण ० -पील० - काउ०- भवसि ० - अब्भवसि० - मिच्छादि ० - असरि० - आहा रगति । वरि कायजोगि ओरालियका ० - अचक्खु०- भवसि० - आहारग त्ति एदेसिं सत्तणं क० अवत्तव्व ० लोभे मोह० श्रवत्तन्वबंधगा च अस्थि ।
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३०६. आदेसेण णेरइएमु सत्तणं क० भुज० - अप्प० - अवट्ठि० आयु० दो विपदा संखेज्जा । एवं सव्वणिरय - सव्वपंचिंदियतिरिक्ख- मणुसअप ० देवा याव सहस्सार ति सव्वविगलिंदिय- सव्व पुढवि० उ० ते ० - वाउ ० - बादरवण ० पत्ते ० पंचिंदिय-तसअप०-वेउव्त्रियका ० - इत्थि ० - पुरिस० - विभंग ० - संजदासंजद ० - ते पम्मले ० - वेदग० - सासण ति ।
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३०७, मणुसेसु सत्तएणं क० भुज० अप्प० अवद्वि० असंखेज्जा । अवत्त ०
परिमाणानुगम
३०५. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोघ निर्देश और प्रदेश निर्देश । श्रधकी अपेक्षा सात कर्मोंके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । श्रयुकर्मके वक्तव्य और अल्पतर पदका बन्ध करनेवाले जीव अनन्त हैं । इसी प्रकार श्रोघके समान सामान्य तिर्यञ्च, सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोद, काययोगी, श्रदारिक काययोगी, श्रदारिकमिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, श्रचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, श्रसंज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि काययोगी, श्रदारिक काययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक इन मार्गाओं में सात कर्मोंके अवक्तव्य पदका और लोभ कषायमें मोहनीयके प्रवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव हैं । .
३०६. आदेशसे नारकियोंमें सात कर्मोंके भुजगार अल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव तथा श्रयुकर्मके दोनों ही पर्दोका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चं, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्यदेव, सहस्रार कल्पतक के देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, अस अपर्याप्त, वैक्रियिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगशानी, संयतासंयत, पीतलेश्या वाले, पद्मलेश्यावाले, वेदकसम्यग्दृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए ।
३०७. मनुष्यों में सात कर्मोंके भुजगार, श्रल्पतर और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात हैं। अवक्तव्य पदका बन्ध करनेवाले जीव संख्यात हैं। आयुकर्मके
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