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________________ माहाबंधे हिदिबंधाहियारे २७७. पंचिंदियतिरिक्खेसु सत्तएणं कम्माणं भुज०-अप्प० जह• एम०, उक्क० तिएिस सम० । अवहिद आयुगं मूलोघं । एवं पंचिंदियतिरिक्खपज्ज०-जोगिणीमु पंचिंदियतिरिक्खअप० पंचिंदि० तस्सेव प्रज्जत्तापज्जत्ता० ओरालियमि०-इत्थि०पुरिस०-असएिण०-आहारग त्ति । वरि पंचिंदि० तस्सेव प्रज्ज० अवत्त० ओघं। २७८. कायजोगि-णवुस०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज-चक्खुदं०-अचक्खुदं०किएण-गील०-काउ०-भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छादि० सत्तएणं क. भुज० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम । अप्पद० जह• एग०, उक्क० तिगिण सम० । अवहि. जह० एग०, उक्क० अंतो० | आयु० अोघं । गवरि सत्तएणं क० यम्हि अवत्त. अत्थि तम्हि ओघं। २७६. कम्पइ०-अणाहा. सत्तएणं क० भुज०-अप्प० जहएणुक्क० एग० । अवहि० जह० एग०, उक्क तिरिण सम । २८०. अवगद० सत्तएणं क० भुज०-अप्प०-अवत्तव्व० जहएणु० एग० । अवहि. उत्कृष्ट काल तीन समय उपलब्ध होनेसे वह तीन समय कहा है। साधारणतः आयु कर्मके अल्पतरबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कह पाये हैं ,पर किसी भी योगमें योगपरिवर्तनकी अपेक्षा या अन्य प्रकारसे उसका जघन्य काल एक समय घटित हो जाता है, इसलिए योगों में आयुकर्मके अल्पतरबन्धका जघन्य काल एक समय कहा है। शेष कथन सुगम है। २७७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें सात कौके भुजगार और अल्पतर बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अवस्थित बन्धका और आयुकर्मका भङ्ग मूलोधके समान है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च पर्याप्त, पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च योनिनी, पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च अपर्याप्त, पञ्चेन्द्रिय और उन्हींके पर्याप्त अपर्याप्त, औदारिक मिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, असंझी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय और उनके पर्याप्त जोवोंमें सात कमौके प्रवक्तव्य बन्धका काल अोधके समान है। विशेषार्थ-यहाँ पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च और अन्य मार्गणाओं में भुजगार और अल्पतरबन्धका उत्कृष्ट काल तीन समय दो पर्यायोंकी अपेक्षा कहा है। शेष कथन सुगम है। इसी प्रकार आगे भी यथासम्भव कालका विचार कर लेना चाहिए। २८. काययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सात कमौके भुजगार बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय है। अल्पतर बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अवस्थित बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मका भङ्ग श्रोधके समान है। इतनी विशेषता है कि सात कौका जिन मार्गणाओं में अवक्रव्य बन्ध है,उनमें उसका काल ओघके समान है। २७९ कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कौके भुजगार और अल्पतर बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थित बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय है। २८०. अपगतवेद्री जीवों में सात काँके भुजगार, अल्पतर और प्रवक्तव्य बन्नका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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