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________________ मुजगारबंधे अंतराणुगमो। १५१ ओघ । सुहुमसे. छगणं क. भुज०-अप्प० जहएणु० एग । अवहि० ओघं । सम्मामि० सत्तएणं क० भुज०-अप्प० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवहि• ओघं। अंथवा आभि०-सुद०-ओधि०-सम्मादि०-खइगस०-सरिण-तिरिणले० भुज० जह एग०, उक्क० सस्थाणे दो लभदि । कालगद एक लभदि । एवं कालो समसो। अंतराणुगमो २८१. अंतरं दुवि०-ओघे० आदे । ओघे० सत्तएणं कम्माणं भुज-अप्पद०अवहि०बंधंतरं केवचिरं ? जह० एग०, उक्क० अंतो। अवत्त बंध० जह• अंतो०, उक० अद्धपोग्गल । आयु० अवत्त०-अप्प० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं सा० सादि० । एवं ओघभंगो अचक्खु०-भवसि । जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितबन्धका काल अोधके समान है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें छह कर्मोके भुजगार और अल्पतर बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितबन्धका काल ओघके समान है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थितबन्धका काल अोधके समान है। अथवा प्राभिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी, अवधिशानी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, संशी और तीन लेश्याओं में भुजगारबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल स्वस्थानमें दो समय और मरनेपर एक समय उपलब्ध होता है। इस प्रकार कालानुगम समाप्त हुआ। अन्तरानुगम २८१. अन्तर दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघकी अपेक्षा सात कर्मोके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित बन्धका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। श्रवक्तव्य बन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तनकाल है। आयुकर्मके प्रवक्तव्य और अल्पतर बन्धका जघन्य अन्तरअन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। इसी प्रकार अोधके समान अचक्षुदर्शनी और भव्य जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ-भुजगार अल्पतर और अवस्थित बन्धोंके परस्पर एक दूसरेसे एक समयके लिए व्यवहित होनेपर इनका जघन्य अन्तर एक समय उपलब्ध होता है । तथा अवस्थित बन्धका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे भुजगार और अल्पतर बन्धका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त उपलब्ध होता है। जो जीव उपशमश्रेणीपर आरोहण करके अन्तर्मुहूर्त काल तक सात कौंका बन्ध नहीं करता है, उसके अवस्थित बन्धका अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल उपलब्ध होता है। एकबार उपशमश्रेणीपर आरोहण करनेके बाद उतरकर पुनः उपशम श्रेणीपर आरोहण करके उपशान्तमोह होने में कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल लगता है और अधिकसे अधिक कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन काल लगता है। इसीलिए सात कमौके प्रवक्तव्यबन्धका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण कहा है। एकबार आयुका बन्ध होनेके बाद पुनः दूसरी बार आयुके बन्ध होनेमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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