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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे सव्वेसिं सत्तएणं कम्माणं भुज० अप्पद० अवहिदि० कस्स ? अण्णदरस्स । आयु. मूलोघं । वरि लोभे मोह आघं ! कालारणुगमो २७५. कालाणुगमेण दुविधो णिसो-ओघेण आदेसेण य ।तत्थ ओघेण सत्तएणं क० भुज० केवचिरं कालादो होंति ? जह• एगस०, उक्क चत्तारि सम । अप्पद० जह• एग०, उक्क तिरिण सम । अवडिद० जह• एग०, उक्क अंतो० । अवत्त० जहएणु० एगस० । आयु० अवत्त० जहएन० एगस० । अप्पद० जह उक्क अंतो । एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं तस-तसपज्जत्ता० । णवरि तिरिक्खोघं अवत्तव्वं पत्थि । मार्गणाओं में सात कर्मों के भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तत्तत्मार्गणावाला जीव स्वामी है। श्रायुकर्मका भङ्ग मूलोघके समान है। इतनी विशेषता है कि लोभकषायमें मोहनीय कर्मका भङ्ग ओघके समान है। विशेषार्थ-यहाँ पाठों कर्मोके भुजगारस्थितिबन्ध आदिमेंसे किसका ओघ और आदेश से कौन स्वामी है, इस बातका विचार किया गया है। ओघसे इनके स्वामित्वका विचार सुगम है और जिन मार्गणाओंमें ओघप्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, उनका विचार भी सुगम है। मात्र जिन मार्गणाओंमें उपशमश्रेणिकी प्राप्ति सम्भव नहीं वहां सात कौंका श्रवक्तव्यबन्ध नहीं होता और जिन मार्गणाओं में आयुकर्मका बन्ध नहीं होता, उनमें आयुकर्मकी अपेक्षा भङ्ग नहीं प्राप्त होते;इतना विशेष जानना चाहिए । __इस प्रकार स्वामित्वानुगम समाप्त हुआ। कालानुगम २७५. कालानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कर्मोके भुजगारवन्धका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय है। अल्पतरवन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। अवस्थितबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । अवक्तव्यबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। आयुकर्मके प्रवक्तव्यबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अल्पतरबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, त्रस और प्रसपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सामान्य तिर्यञ्चोंके सात कर्मोंका श्रवक्तव्यबन्ध नहीं होता। विशेषार्थ-यहां भुजगार आदि बन्धोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल कितना है,यह बतलाया गया है। भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका जघन्य काल एक समय है, यह स्पष्ट ही है। मात्र इनके उत्कृष्ट कालका विचार करना है। ओघसे भुजगारबन्ध और अल्पतरबन्धका उत्कृष्ट काल दो पर्यायोंकी अपेक्षा उपलब्ध होता है। जो एकेन्द्रिय आदि द्वीन्द्रिय आदिमें और पञ्चेन्द्रिय आदि चतुरिन्द्रिय आदिमें मरकर जन्म लेते हैं, उनके क्रमसे भुजगारबन्धका उत्कृष्ट काल चार समय और अल्पतरबन्धका उत्कृष्ट काल तीन समय उपलब्ध होता है। अवस्थितबन्धका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। कारण कि भुजगार या अल्पतर बन्ध होनेके बाद अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त कालतक समान स्थितिवन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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