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महाबंधे टिदिबंधाहियारे द्विदिवं० विसे० । यहिदिबं० विसे० । मोह. जह हिदिव० सं०गु०। यहिदिवं० विसे । आयु० उक्क हिदिव० सं०गु० । यहिदिबं० विसे० । णामा-गोदाणं उक्त हिदिबं० सं० गु०। यहिदिबं० विसे । तीसिगाणं उक्क हिदिवं० विसे । यहिदिबं० विसे । मोह० उक्क हिदिबं० सं०गु० । यहिदिवं विसे ।।
२६२. पंचिंदियति०३-विभंगे. सव्वत्थोवा आयु. जहहिदिवं । यहिदिवं. विसे । उक्त हिदिवं. असं गु० । यहिदिवं० विसे० । णामा-गोदाणं जह०हिदिव० सं०गु० । यहिदिबं० विसे० । चदुएणं क० जह हिदिबं. विसे । यहिदिवं० विसे । मोह० जहहिदिव० सं०गु०। यहिदिवं० विसे० । णामागोदाणं उक्क हिदिबं० सं०गु० । यहिदिबं० विसे० । तीसिगाणं उक्क हिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे०। मोह० उक्क हिदिव० सं०गु० । यहिदिबं० विसे । एवं असएिण० । वरि णामा-गोदाणं जह०हिदिवं. असंखेन्गुणं कादव्वं । ___ २६३. मदि०-सुद०-किरण०-णील०-काउ०-अब्भवसि०-मिच्छादि० तिरिक्खोघभंगो। पंचिंदियतिरिक्खअप०-मणुसअप०-पंचिंदिय-तसअप०-ओरालियमि० णिरयभंगो । जोदिसिय-प्पहुडि याव उपरिमगेवज्जा त्ति विदियपुढविभंगो । अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीयकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तीसियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
२६२. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक और विभङ्गशानी जीपोंमें आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार कौंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तीसियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार असंही जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा कहना चाहिए।
२६३. मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, अमव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चोंके समान अल्पबहुत्व है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, अस अपर्याप्त और औदारिकमिश्रकाययोगी जीपोंमें नारकियोंके समान अल्पबहुत्व है। ज्योतिषियोंसे लेकर उपरिम प्रैवेयक तकके देवोंमें
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