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भूयो द्विदिअप्पाबहुगपरूवणा
१३६ सणिण-आहारग नि । णवरि इत्थि-णवुस० णामा-गोदा० जहहिदिवं. असं०गु० । यहिदिबं० विसे । ___२६०. आदेसेण णेरइएसु सव्वत्थोवा आयु० जह हिदिबं० । यहिदिबं. विसे । उक्त हिदिव० सं०गु० । यहिदिवं. विसे । णामा-गोदाणं जहहिदिवं. असं०गु० । यहिदिबं० विसे । णाणाव-दसणाव-वेदणी०-अंतराइ० जहहिदिवं विसे । यहिदिवं. विसे० । मोह० जहहिदि० सं०गु० । यहिदिबं० विसे । णामा-गोदाणं उक्त हिदिबं० सं०गु० । यहिदिबं० विसे० । तीसिगाणं उक्क हिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे । मोह० उक्क हिदिबं० संखेगु० । यहिदिबं० विसे । एवं पढमपुढवि०-देवोघं-भवण-वाणवेंतर त्ति । विदियाए याव सत्तमा त्ति एवं चेव । णवरि मोह० जह हिदिबं० विसे० । यहिदिवं० विसे । णामा-गोदाणं उक्क ट्ठिदिबं० सं०गु० । यहिदिवं विसे । तीसिगाणं उक्त हिदिबं०विसे । यहिदिबं० विसे । मोह, उक्क हिदिव० सं०गु० । यहिदिबं० विसे० ।
२६१. तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा आयु० जह हिदिवं०। यहिदिबं० विसे। णामा-गोदाणं जहहिदिवं असं गु०। यहिदिवं० विसे । चदुषणं क० जह०और नपुंसकवेदी जीवों में नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
२६०. आदेशसे नारकियोंमें आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे श्रायुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे शानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नाम और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तीसिय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार पहली प्रथिवी. सामान्य देव, भवनवासी और व्यन्तर देवोंके जानना चाहिए। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मोहनीयकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम
और गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे तोसिय कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
२६१. तिर्यञ्चोंमें आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष
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