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________________ भूयो द्विदिअप्पाबहुगपरूवणा १४१ अणुदिस याव सव्वहा त्ति आणदभंगो। णवरि मोह० उक्क डिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे० । ___ २६४. एइंदिएसु सव्वत्योवा आयु० जह हिदिवं० । यहिदिबं० विसे । उक.हिदिबं० सं०गु० । यहिदिवं० विसे । णामा-गोदाणं जह हिदिबं. असं०गु०। यहिदिबं० विसे । तेसिं चेव उक्कस्सहिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे० । चदुएणं क. जहहिदिवं० विसे०। यहिदिबं० विसे । तेसिं चेव उक्त हिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे० । मोह० जहहिदिबं० सं०गु०। यहिदिबं० विसे । तस्सेव उक्क हिदिबं० विसे । यहिदिबं० विसे० । एवं सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-सव्वपंचकायाणं । २६५. वेउन्वियका विदियपुढविभंगो। एवं वेउव्वियमि० । वरि आयु० पत्थि । सम्मामिच्छादिट्टी. सव्वभंगो। आयु० पत्थि । अाहार०-आहारमि. सन्वट्ठभंगो। णवरिणामा-गोदाणं जह हिदिव० सं०गु० । कम्मइ०-अणाहारग त्ति पढमपुढविभंगो । आयु० पत्थि ।। २६६. अवगदवे० सव्वथोवा मोह० जहहिदिवं० । यहिदिवं० विसे । दूसरी पृथिवीके समान अल्पबहुत्व है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवों में आनत कल्पके समान अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि अनुदिशादिकमें मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। २६४. एकेन्द्रियों में आयुकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नाम और गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यात गुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे उन्हींका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार काँका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे उन्हींका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मोहनीयका जघन्य स्थिति बन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उसीका उत्कृष्ट स्थिति बन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय और सब पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए। २६५, वैक्रियिक काययोगी जीवों में दसरी प्रथिवीके समान अल्पबहत्व है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके आयुकर्मका बन्ध नहीं होता। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सर्वार्थसिद्धिके समान अल्पबहुत्व है। किन्तु इनके आयुकर्मका बन्ध नहीं होता। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सर्वार्थसिद्धिके समान अल्पबहुत्व है। इतनी विशेषता है कि इनमें नाम और गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में पहली पृथिवीके समान अल्पबहुत्व है। पर इनके आयुकर्मका बन्ध नहीं होता। २६६. अपगतवेदी जीवों में मोहनीय कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तो । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे शानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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