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________________ जीवन पावहुगपरूवणा १२९ सिणीसु | गवरि संखेज्जं कादव्वं । एवं सव्वट्टे । मणुस अपज्जत्ता ० गिरयभंगो । २३०. आरणद याव रणवगेवज्जा त्ति सत्तणं क० थोवा उक्क० हिदिबं० । [ जह० ] संखे० गु० । अजह०म० श्रसंखेज्जगु० । आयु० मणुसिभंगो । अणुद्दिसादि याव अवराइदा ति सत्तरगं क० थोवा जह० द्विदिबं० । उक्क० हिदिबं० संखेज्जगु० । ज०म० असंखेज्जगु० । आयु० मसिभंगो । २३१. एईदिएसु सत्तणं क० थोवा जह० हिदिबं० । उक्क० हिदिबंध ० संखेज्जगु० । ज०मद्विदिवं असंखेज्जगु० । आयु० मूलोघं । एवं सव्वएइंदिय- सव्वविगलिंदियसव्व पुढ वि० उ०- तेउ०- वाउ ० - वणप्फदि - रिणयोद ० - बादरवणप्फ of ० पत्तेय ० 1 वरि वफद -गियोदेसु यु० एइंदियभंगो । सेसाणं पंचिदियतिरिक्खभंगो । २३२. पंचिंदिय-तस० सत्तणं क० सव्वत्थोवा जह० द्विदिवं० । उक्कट्टिदिबं० असंखेज्जगु० । अज०म० द्विदिबं० असं० गु० । आयु० पंचिंदियतिरिक्खभंगो । एवं पंचमरण ० - पंचवचि ० - वेडव्वियका ० - वेडव्वियमि० इत्थि० - पुरिस० विभंग ०-संजदासंजद ० - चक्खुदं० तेउ०- पम्म० - सम्मामि ० - सरि ति । ओरालियमि० सव्वत्थोवा O ख्यात स्थानमें संख्यात कहना चाहिए । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए । मनुष्य पर्यातकों का भङ्ग नारकियोंके समान है । २३०. आनतकल्पसे लेकर नव ग्रैवेयक तकके जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले देव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले देव संख्यातगुणे हैं । इनसे श्रजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले देव श्रसंख्यातगुणे हैं। श्रयुकका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवों में सात कमकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले देव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले देव संख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले देव असंख्यात - गुणे हैं। आयुकर्मका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है । २३१. एकेन्द्रियोंमें सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणें हैं । इनसे जघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणे हैं । श्रायुकर्मका भङ्ग मूलोघके समान है । इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, सब जलकायिक, सब कायिक, सब वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोद, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वनस्पतिकायिक और निगोद जीवों में आयुकर्मका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है और शेष मार्गणाओं में आयुकर्मका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोके समान है । २३२. पञ्चेन्द्रिय और प्रसकायिक जीवोंमें सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव श्रसंख्यातगुणें हैं । इमसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणें हैं। आयुकर्मका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के समान है। इसी प्रकार पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, वैकियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संशी जीवके जानना चाहिए । १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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