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________________ १२८ महाबंधे टिदिबंधाहियारे सत्तएणं क० जहहिदिबं० जीवा । उक्कस्साहिदिबंध० जीवा असंखेज्जगुणा । अजहएणमणुक्कस्सहिदिवं० जीवा अणंतगु० । आयुग० सव्वत्थोवा' उक्क डिदिबं० जीवा । जह हिदिवं० जीवा अणंतगु० । अज०अणु० असंखेजगु० । एवं ओघभंगो कायजोगि-ओरालियका०-णस०-कोधादि०४-अचखुदं०-भवसि०-आहारग त्ति । २२७. आदेसेण ऐरइएसु सव्वत्थोवा सत्तएणं क० जहहिदिवं० । उक्क०हिदिबं० असंखेजगु० । अज०अणु० असं० गु० । आयु० सव्वत्थोवा उक० । जह ट्ठिदिवं. असं०गु० । अजहएणमणु०७० असं०गु० । एवं सव्वणिरय० देवाणं याव सहस्सार त्ति । २२८. तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा अण्णं कम्माणं उक्क०हिदिवं० जीवा । जह०हिदिबं० जी० अणंतगु० । अज०मणु० हिदिवं. असं०गु० । पंचिंदियतिरिक्ख०४ सव्वत्थोवा अट्टएणं कम्माणं उक्क० । जह० असं०गु० । [अज०मणु० असं गु० ।] एवं पंचिंदिय-तसअपज्ज० । ___ २२६. मणुसेसु सत्तएणं कम्माणं थोवा जहहिदिबं० । उक्क०हिदिबं. संखेज्जगु० । अज०मणु० असं०गु० । आयु० णिरयभंगो। एवं मणुसपज्जत्त-मणुबन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्यानुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्तगुणे हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करने वाले जीव सबसे स्तोक हैं । जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अजघन्यानुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यात गुणे हैं। इसी प्रकार अोधके समान काययोगी, औदारिक काययोगी,नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । २२७. आदेशसे नारकियोंमें सात कर्मोकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य देव, सहस्रारकल्प तकके देवोंके जानना चाहिए । २२८. तिर्यञ्चोंमें आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जोव असंख्यातगुणे हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च चतुष्कमें आठों कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करने वाले जीव असंख्तातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे है । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवों के जानना चा २२९. मनुष्यों में सात कमौकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे है । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मका भङ्ग नारकियोंके समान है। इसी प्रकार मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि असं १. मूलप्रतौ सम्वत्थोवा सत्तएणं क. उक्क० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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