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________________ १३० महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे अट्ठएणं क० उक्क हिदिवं० । जहहिदिबं० अणंतगु० । अज०मणु हिदिवं० असं०गु० । एवं कम्मइ०-दि०-सुद०-असंज-किरण०-णील०-काउ०-भवसि०मिच्छादि०-असएिण-अणाहारग ति । आहार-आहारमि० सत्तएणं क. सव्वत्थोवा जहहिदिवं । उक्त हिदिबं० संखेज्जगु० । अज०मणु हिदिव० सं०गु० । आयु. मणुसिभंगो । एवं मणपज्जव-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहारग त्ति । अवगदवे०-सुहुमसं० सत्तएणं क० छएणं क० उक्क.हिदिवं. थोवा । जहहिदिबं० संखेज्जगु० । अज०मणु हिदिव० संखेज्जगु० । २३३. आभि-सुद०-अोधि० सत्तएणं क० सव्वत्योवा जहहिदिवं० । उक्क०हिदिबं. असं०गु० । अज०मणु हिदिबं. असं०गु० । आयु. सव्वत्थोवा उक्क० द्विदिबं० । जह०दिदिबं० संखेजगु० । अज०मणुहिदिवं. असं०गु० । एवं अोधिदं०-सम्मादि०-वेदगसम्मादि० । २३४. मुक्कले० सत्तएणं क०सव्वत्थोवा जह०हिदिबं०। उक्क डिदिबं. असं०गु० । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में पाठ कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक है। इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव अनन्तगणे हैं। इनसे अजा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार कार्मणकाययोगी, मत्यहानी, श्रुताशानी, असंयत, कृष्ण लेश्यावाले, नील लेश्यावाले, कापोत लेश्यावाले, भव्य, मिथ्यादृष्टि, असंही और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । आहारक काययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अज घन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुण हैं। आयुकर्मका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। इसी प्रकार मनःपर्ययशानी, संयत, सामायिक संयत, छेदोपस्थापनासंयत, और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके जानना चाहिए। अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में क्रमसे सात कर्म और छह कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणें हैं। २३३. आभिनिबोधिकमानी, श्रुतशानी और अवधिज्ञानी जीवों में सात कौंकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं। इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्य. ग्दृष्टिके जानना चाहिए । २३४. शुक्ललेश्यावाले जीवों में सात कमौकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे १' मूलप्रतौ हिदिबं० सं० गु० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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