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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
आयु० अ० लोग० संखे० | मुहुमएइंदियपज्जत्तापज्ज० सत्तएां क० उ० प्र० सव्वलो ० ० । आयु० उक्क० लोग० असंखे० सव्वलो ० । ० सव्वलोगो । एवं सव्वसुहुमाणं ।
१७६. पंचिंदिय-तस०२ सत्तणं क० उक्क० अह-तेरह ० । अणु० चोदस० सव्वोलोगो वा । आयु॰ उक्क० खेत्तभंगो। [ अणुक्क० ] अट्ठचोदस० । एवं पंचमरण०पंचवचि० - इत्थि० - पुरिस० विभंग ० चक्खुदंसरिणति ।
स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त अपर्याप्त जीवों के जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें आयुकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त अपर्याप्त जीवों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सब सूक्ष्म जीवोंके जानना चाहिए ।
विशेषार्थ —यहाँ सूक्ष्म एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त अपर्याप्त जीवोंमें आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन दो प्रकारका कहा है सो उसमें से लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन वर्तमान कालकी अपेक्षा कहा है और सब लोकप्रमाण स्पर्शन अतीत कालकी अपेक्षा कहा है। शेष कथनका विचार इन मार्गणाओंके स्पर्शनको देखकर कर लेना चाहिए ।
१७६. पञ्चेन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें सात कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । श्रायुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगशानी और चक्षुदर्शनी जीवोंके जानना चाहिए |
विशेषार्थ—यहाँ विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु स्पर्शन उपलब्ध होता है । यह सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिबन्धकी अपेक्षा स्पर्शन है किन्तु अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धकी अपेक्षा तो कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोक स्पर्शन उपलब्ध होता है । इनमें से कुछ कम आठ बटे चौदह राजु स्पर्शनका खुलासा पूर्ववत् है और सब लोकप्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा जानना चाहिए । कारण कि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले उक्त जीव सब लोक मारणान्तिक समुद्धात करते हुए उपलब्ध होते हैं । श्रयुकर्मकी अपेक्षा स्पर्शनका विचार करते हुए अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन केवल कुछ कम आठ बटे चौदह राजु कहा है सो इसका कारण यह है कि मारणान्तिक समुद्धात के समय आयुकर्मका बन्ध नहीं होता, अतएव विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम श्राठ बटे चौदह राजु स्पर्शन ही यहाँ सम्भव है, इससे अधिक नहीं ।
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