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________________ उक्कस्सफोसणपरूवणा १०३ १७३. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता० सत्तएणं क. उक्क० अणु० लोग० असंखे सव्वलोगो वा । आयु० खेत्तभंगो। एवं मणुसअपज्जत्त-सव्वविगलिंदियपंचिंदिय-तसअपज्जत्ता० बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०पज्जत्ता० बादरवणप्फदि०पत्तेयपज्जत्ता० । १७४. मणुस० सत्तएणं क० उक्क० खेत्तभंगो। अणु लोग० असंखे० सव्वलो०। आयु० खेत्तभंगो । देवेसु सत्तएणं क० उक्क० अणु० अह-णवचोदस० । आयु० उक्क० अणु० अहचोदस० । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं कादव्वं ।। १७५. एइंदिएसु सत्तएणं क० उक्क० अणु सव्वलोगो । आयु० उक्क० लोग० असंखे०। अणु० बंध० सव्वलोगो। एवं बादरएइंदियपज्जत्तापज्जत्ता० । णवरि तिर्यश्चोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष कथन सुगम है। १७३. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सात कौकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका भङ्ग क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, बस अपर्याप्त, बादरपृथ्वीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीरपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ–पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंका वर्तमान कालीन स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और मारणान्तिक व उपपाद पदकी अपेक्षा अतीतकालीन स्पर्शन सब लोक है। यहां अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं,उनका स्पर्शन इसी प्रकार है, इसलिए इनमें सात कर्मोकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष कथन सुगम है। १७४. मनुष्य त्रिकमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। देवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिए। विशेषार्थ-देव विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह राज और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा कुछ कम नौ वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन करते हैं। किन्तु मारणान्तिक समुद्धात के समय आयुबन्ध नहीं होता, इसलिए इनके आयुकर्मकी अपेक्षा केवल कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन कहा है। भवनवासी आदि देवोंमें अपने-अपने स्पर्शनको जानकर यहां यथासम्भव स्पर्शनका निर्देश करना चाहिए। शेष कथन सुगम है। १७५. एकेन्द्रियों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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