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महाबंधे दिदिबंधाहियारे आयु. वज्ज । अवगद० णाणावर० उक्क० बंधतो छण्णं कम्माणं णियमा बंधगो। णियमा उक्कस्सा । एवं छएणं कम्माणं । एवं मुहुमसंप० छएणं क० ।
१३०. असएिण. सत्तएणं कम्माणं ओघं । आयु० उक्क० सत्तएणं कम्माणं णियमा बंधगो। तं तु उक्क० अणु०१ विट्ठाणपदिदं बंधदि-असंखेज्जभागहीणं संखेजभागहीणं वा । एवमुक्कस्सो वंधसएिणयासो समत्तो।
१३१. जहएणए पगदं। दुविधो सिद्दसो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण णाणावरणीयस्स जहरणं हिदि बंधतो पंचएणं कम्माणं णियमा बंधदि । णियमा जहएण० । दोरणं पगदीणं अबंधगों। मोह० जहएणहिदिबंधगो
जीवों में सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका सन्निकर्ष मूलोघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओंमें आयुकर्मका बन्ध नहीं होता। अपगतवेदमें शोनावरणकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव छह कौंका नियमसे बन्धक होता है । तथा नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार शेष छह कौके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंयतके छह कर्मीका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए।
विशेषार्थ-यहाँ जितनी मार्गणाएँ ग्रहण की हैं, उन सबमें अायुकर्मका बन्ध नहीं होता; यह स्पष्ट है । अपगतवेद और सूक्ष्मसाम्परायमें एक समयका परिणाम एक-सी विशुद्धिको लिये हुए होता है, इसलिए एक कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होनेपर सबका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है । यही कारण है कि यहाँ उत्कृष्ट स्थितिबन्धके साथ अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके सन्निकर्षका विधान नहीं किया। तथा मोहनीयका बन्ध नौवें गुणस्थान तक ही होता है,इसलिए सूक्ष्मसाम्परायमें मोहनीयके बिना छह कर्मका सन्निकर्ष कहा है।
१३०. असंशी जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका सन्निकर्ष अोधके समान है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला सात कोका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु उसे अनुत्कृष्ट बाँधता है जो उत्कृष्टकी अपेक्षा दो स्थानपतित बाँधता है। या तो असंख्यातवाँ भागहीन बाँधता है या संख्यातवाँ भागहीन बाँधता है।
विशेषार्थ-असंशियों में एकेन्द्रियसे लेकर असंशी पञ्चेन्द्रिय तक जीव लिये गए हैं। जो द्वीन्द्रियादिक जीव हैं वे श्रायुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करते समय शेष कौंका अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे संख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध करते हैं और जो एकेन्द्रिय जीव हैं वे आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करते समय अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे असंख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध करते हैं। इसीसे असंशी जीवोंमें उक्त प्रकारसे सन्निकर्ष कहा है।
इस प्रकार उत्कृष्ट बन्धसन्निकर्ष समाप्त हुआ। १३१. अब जघन्य सन्निकर्षका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैश्रोध और प्रादेश। उनमेंसे श्रोधकी अपेक्षा ज्ञानावरणको जघन्य स्थितिका बन्ध करने वाला पाँच कर्मों का नियमसे बन्धक होता है। जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है और दो प्रकृतियोंका प्रबन्धक होता है। मोहनीयकी जघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाला
१. मूलप्रतौ अणु० बंधदि विट्ठाण-इति पाठः । २. मूलप्रतौ श्रबंधगो एवं पंचिंदि० जहएणुक्क० मोह० इति पाठः।
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