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उक्कस्सअंतरपरूवणा ६६. तिरिक्खेसु सत्तएणं कम्माणं अोघभंगो । आयु० उक्क पत्थि अंतरं । अणुक्क० जह• अंतो०, उक्क० तिषिण पलिदो० सादि । पंचिंदियतिरिक्ख०३ सत्तगणं क० उक्क० जह• अंतो०, उक्क० पुवकोडिपुधत्तं । अणु० ओघं । आयु० तिरिक्खोघं । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज. सत्तएणं कम्माणं उक्क० जहएणु० अंतो० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो । आयु० उक्क० जह• अंतो० समयूणं, उक्क० अंतो० । अणुक्क० जहएणुक्क० अंतो० । एवं सव्वअपज्जत्ताणं तसाणं थावराणं णादव्वं । मणुस०३ पंचिंदियतिरिक्खभंगो ।
१००. देवेसु सत्तएणं कम्माणं उक्क० जह• अंतो०, उक्क० अटारससागरो० सादिरे । अणु० जह० एग०, उक्क अंतो । आयु णिरयभंगो । एवं सचदेवाणं अप्पप्पणो हिदी देसूणा कादव्वा ।
१०१. एइंदिएसु सत्तएणं क० उक्क जह• अंतो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा।
९९. तिर्यञ्चों में सात कर्मोंका अन्तर ओघके समान है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थिति बन्धका अन्तर नहीं है। आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है
और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर ओघके समान है । आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धका अन्तर सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकों में सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का जघन्य अन्तर एक समय कम अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार त्रस और स्थावर सब अपर्याप्तकोंके जानना चाहिए । मनुष्यत्रिकमें पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भंग है।
विशेषार्थ-पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंकी कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होनेसे इनमें आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त उपलब्ध हो जाता है।
१००. देवोंमें सात कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मका भङ्ग नारकियोंके समान है । इसी प्रकार सब देवोंके सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर काल कहते समय वह कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिए।
विशेषार्थ देवोंमें सात कोका ओघ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध बारहवें कल्पतक होता है। इसीसे यहाँ सामान्य रूपसे देवोंमें सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अठारह सागर प्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है ।
१०१. एकेन्द्रियों में सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक
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