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________________ महाबंधे हिदिबंधाहियारे ८. प्रादेसेण णेरइगेसु सत्तएणं कम्माणं उक्क० जह• अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० देसू० । अणुक्क. जह• एग०, उक्क० अंतो। आयुग उक्क० पत्थि अंतरं । अणुक्क० जह• अंतो, उक्क० छम्मासं देसू० । एवं सत्तपुढवीसु अप्पप्पणो हिदी देसूणा । view.. ......... उत्कृष्ट अन्तर काल उपलब्ध होता है । इसीसे यहाँ उक्त कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल अर्थात् असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण कहा है। सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्मुहूर्त होनेसे यहाँ इनके अनु ष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्टअन्तर अन्तर्महर्त कहा है। प्रोसे आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पूर्वकोटिकी श्रायुवाला तिर्यञ्च और मनुष्य अपने प्रथम त्रिभाग कालके शेष रहने पर करता है। यदि ऐसा जीव उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करके और उसको अपकर्षण द्वारा दश हजार वर्ष प्रमाण करके प्रथम नरकमें या भवनवासी और व्यन्तरों में उत्पन्न होकर तथा वहां क्रमसे पूर्व कोटिप्रमाण आयुका बन्ध करके पुनःमनुष्य और तिर्यञ्चों में उत्पन्न होकर पुनः प्रथम त्रिभागमें तेतीस सोगर प्रमाण उत्कृष्ट आयुका बन्ध करता है, तो आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम पूर्वकोटि और दस हजार वर्ष प्रमाण उपलब्ध होता है। यही कारण है कि इसका जघन्य अन्तर उक्तप्रमाण कहा है। उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है, यह स्पष्ट ही है। जो जीव अन्तर्मुहूर्तके अन्तरसे आयकर्मका अनत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है उसके उसका जघन्य अन्तर अन्तमहर्त उपलब्ध होता है और जिस मनुष्य और तिर्यञ्चने प्रथम त्रिभागमें आयुकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया तथा इसके बाद द्वितीयादि समयोंमें अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया। अनन्तर उत्कृष्ट स्थितिके साथ वह देव या नारकी हुआ। पुनः वहाँ उसने आयुके अन्तमें अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर पुनः आयुका अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया,तो उसके आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका साधिक तेतीस सागर उत्कृष्ट अन्तर काल उपलब्ध होता है। यही कारण है कि यहाँ आयुकर्मके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है। ९८. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें सात कोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। इसी प्रकार सात पृथिवियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि प्रत्येक पृथिवीमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहना चाहिए। विशेषार्थ-सातों पृथिवियों में सातो कर्मोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तके अन्तरसे या कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट आयुके अन्तरसे हो सकता है। इसीसे यहाँ सातों कर्मोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर सामान्यसे कुछ कम तेतीस सागर तथा प्रत्येक पृथिवीकी अपेक्षा कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है। यहाँ आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अवसर यदि आता है, तो एकबार ही आता है। इसीसे आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर काल नहीं कहा है। शेष कथन सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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