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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ओधि०-मणपज्ज-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०-संजदासंजद० उक्कस्सभंगो । असंजद०-अन्भवसि-मिच्छादिहि मदिभंगो। ६३. चक्खुदं. तसपज्जत्तभंगो । अचक्खु०-भवसि० ओघं । णवरि भवसि० अणादियो अपज्जवसिदो पत्थि। ओघिदं०-सम्मादि०-खइग०-वेदग० उक्कस्सभंगो । ६४. किएण-णील-काउ० उक्कस्सभंगो । तेउले-पम्मले० सत्तएणं क. जह० जह एग०, उक्क • अंतो० । अज० जह• अंतो०, उक्क० ने अहारस सागरोव० सादिरे । सुक्काए सत्तएणं क० जह• जह• उक्क ' अंतो० । अज० जह• अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादिरे । ६५. उवसम० सत्तएणं क० जह० जह० एग०, उक्क० अंतो । अज० जह उक्क. अंतो० । सासणस० अहएणं का सम्मामि० सत्तएणं क. उक्कस्सभंगो । सएिण. पंचिंदियपज्जत्तभंगो । असएिण. तिरिक्खोघं । ६६. आहार० सत्तएणं क० जह• जह• उक्क अंतो । अज० जह० एग०, उक्क० अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो । एवं बंधकालो समत्तो। ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत इनमें जघन्य स्थिति बन्धका काल उत्कृष्टके समान है। असंयत, अभव्य और मिथ्यादृष्टियोंमें मत्यज्ञानियों के समान है। ९३. चक्षुदर्शनवालोंमें त्रसपर्याप्तकोंके समान है। अचवुदर्शनवाले और भव्य जीवों में ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि भन्योंमें अनादि-अपर्यवसित विकल्प नहीं होता। अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में कालअपने-अपने उत्कृष्टके समान है। ९४. कृष्ण, नील और कापोत लेश्यामें काल अपने उत्कृष्टके समान है। पीत और पद्मलेश्यामें सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल क्रमसै साधिक दो सागर और साधिक अठारह सागर है। शुक्ललेश्यामें सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है तथा उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। ९५. उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें सात कंौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्महर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । सासादनसम्यग्दृष्टियों में पाठ कौका और सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में सात कर्मोका काल उत्कृष्टके समान है । संशियोंमें पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंके समान काल है और. असंझियों में सामान्य तिर्यञ्चोंके समान काल है। ९६. आहारकों में सात कौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्त. मुहूर्त है । अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। १. मूलप्रतौ उक्क० जह० अंतो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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