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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ८७. बेइंदि-तेइंदि-चदुरिंदि० तेसिं चेव पज्जनाणं सत्तएणं क. जह• तिरिक्खोघं । अज० जह• एग०, उक्क संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । अपज्ज. पंचिंदियतिरिक्वअपज्जतभंगो । पंचिंदिय-तस० तेसिं चेव पज्जत्ताणं सत्तएणं. क. जह ओघं। अज० जह• अंतो०, उक्क० सगठिदी । अपज्जत्ता० पंचिंदियतिरिक्खअपज्जतभंगो। ८८. सव्वपुढवि०-आउ-तेउ०-बाउ-वणप्फदि-पत्तेय-णिगोद० सत्तएणं क० जह० एइंदियभंगो । अजह० जह० एग०, उक्क अणुक्कस्सभंगो। ८६. पंचमण-पंचवचि० सत्तएणं क० जह• अजह जह० एग०, उक्क० अंतो। कायजोगि० सत्तएणं कम्माणं जह जह• एग०, उक्क० अंतो। अजह जह० एग०, उक्क० अणंतका । ओरालियका सत्तएणं क० जह• जह• एग०, उक्क० अंतो० । अजजह एग०, उक्क • बावीसं वस्ससहस्साणि देसू० । ओरालियमि०-वेउव्वियमि० आहारमि० उकस्सभंगो । वेउव्वियका मणजोगिभंगो । एवं आहारका कम्मइ०प्रणाहारउक्कस्सभंगो। ८७. द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तथा इन्हींके पर्याप्तकोंमें सात कोके जघन्य स्थितिबन्धका काल सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। द्वीन्द्रिय आदि तीनों अपर्याप्तकोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान काल है। पञ्चेन्द्रिय और प्रस तथा इनके पर्याप्त जीवों में सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका काल ओघके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। इनके अपर्याप्तकोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान काल है। ८८. सब पृथ्वीकायिक, सब जलकायिक, सब अग्निकायिक, सब वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, सब वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर और सब निगोद जीवों में साप्त कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका काल एकेन्द्रियोंके समान है। इनमें अजघन्य स्थितिबन्धका अघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धके उत्कृष्ट कालके समान है। ८९, पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवों में सात कर्मों के जघन्य और अजधन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्त है। काय योगी जीवों में सात कर्मों के जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजयन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल अनन्तकाल है। औदारिक काययोगी जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अजधन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उस्कृष्ट काल कुछ कम बाईस हजार वर्ष है। औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्धके समान काल है। वैक्रिविककाययोगी जीवोंमें मनोयोगियोंके समान काल है। इसी प्रकार पाहारककाययोगियोंके जानना चाहिए। कार्मणकाययोगी और अनाहारकोंमें अपने-अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्धके समान काल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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