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________________ महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ८२. आदेसेण णेरइएमु सत्तएणं कम्माणं जह० जह० एग०, उक्क• बेसम। अज्ज. जह० दसवस्ससहस्साणि बिसमयूणाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । एवं पढमाए पुढवीए । णवरि सगहिदी । विदियाए याव सत्तमा ति उक्कस्सभंगो । गवरि सत्तमाए अज. जह• अंतो० । ८३. तिरिक्खेसु सत्तएणं कम्माणं जह• जह• एग०, उक्क अंतो० । अज. जह० एग०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। पंचिंदियतिरिक्व३ जहएणं तिरिक्खोघं । अज. जह० एम०, उक्क० सगहिदी । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्त० जह• अजह उकस्सभंगो। जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त उपलब्ध होता है और यदि ऐसा जीव कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल तक पुनः श्रेणी पर नहीं चढ़ता है.तो इसका काल कुछ कम अर्धपदल परिवर्तनप्रमाण प्राप्त होता है। यही कारण है कि सात कमौके अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कहा है। ८२. आदेशसे नारकियों में सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अजघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल अपनी स्थितिप्रमाण कहना चाहिए। दसरो प्रथिवीसे लेकर सातवीं तक कालकी प्ररूपणा उत्कृष्टके समान है। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ-जो तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला असंशी जीव मरकर नरकमें उत्पन्न होता है, उसके एक या दो समय तक सात कौका जघन्य स्थितिबन्ध होता है। इसीसे यहां सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय कहा है। दस हजार वर्षप्रमाण नरककी जघन्य स्थितिमेंसे ये दो समय कम कर देनेपर वहां अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्यकाल होता है। उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है,यह स्पष्ट ही है। पहली पृथिवीकी अपेक्षा यह प्ररूपणा इसी प्रकार है। कारण कि असंझी जीव पहली पृथिवीमें ही उत्पन्न होता है। मात्र यहां अजघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल यहां की उत्कृष्ट स्थिति एक.सागर प्रमाण कहना चाहिए। शेष पृथिवियोंमें जघन्य स्थितिबन्ध के कालका विचार उत्कृष्ट स्थितिबन्धके कालके समान कर लेना चाहिए। ८३. तिर्यञ्चोंमें सात कर्मोंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च त्रिकमें जघन्य स्थितिबन्धका काल सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। अजघन्य स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें जघन्य और अजघन्य स्थितिबन्धका काल उत्कृष्ट स्थितिबन्धके कालके समान है। विशेषार्थ-यद्यपि तिर्यश्च गतिमें एक जीवके रहनेका उत्कृष्ट काल असंख्यात पुद्रल परिवर्तनप्रमाण है, तथापि ऐसा जीव तिर्यंच गतिकी सब योनियों में परिभ्रमण कर लेता है.इसलिए सात कौके अजघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल इतना उपलब्ध नहीं होता, क्योंकि इस जीवके पर्यात एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने पर जघन्य स्थितिबन्ध सम्भव है प्रतः यहां सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके कालकी मुख्यतासे अजघन्य स्थितिबन्धका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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