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जहरणकालपरूवणा ७६. खइगस• सत्तएणं क० उक्क० जह० एग०, उक्क. अंतो। अणु० जह• अंतो, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि । आयु० ओघं । वेदगसम्मा० सत्तएणं कम्माणं उक्क० जह उक्क० अंतो। अणु० जह• अंतो०, उक्क छावहिसाग । आयु. ओघं । उवसमस-सम्मामि सत्तएणं क. उक्क० अणु० जह• उक्क. अंतो । सासण. सत्तएणं क० उक्क० जह• एग०, उक्क० अंतो० । अणुक्क जह• एग०, उक्क० छावलिगाओ । आयु० ओघं ।।
८०. सरिण पंचिंदियपज्जत्तभंगो । एवं उक्कस्सबंधकालो समत्तो ।
८१. जहएणए पगदं । दुविधो णिदेसो-अोघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सत्तएणं क० जहएणहिदिबंधकालो केवचिरं कालादो होदि ? जह• उक्क. अंतो। अजहएण. केवचिरं कालादो ? अणादियो अपज्जवसिदो त्ति भंगो । यो सो सादि. जह अंतो०, उक्क० अद्धपोग्गलपरियट्ट । आयु० उक्कस्सभंगो। एवं याव आहारग त्ति । आयु० ओघभंगो।
७९. क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागरोपम है। आयु कर्मका काल ओघके समान है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें सात कमौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्महर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल छयासठ सागर है। आयु कर्मका काल प्रोघके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियों और सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में सात कौके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। सासादनमें सात कौके उत्कृष्टस्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह श्रावलि है। आयु कर्मका काल ओघके समान है। ८०. संशियों में सब कमौका उक्त काल पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है।
इस प्रकार उत्कृष्ट बन्धकाल समाप्त हुआ। ८१. अब जघन्य बन्ध कालका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैश्रोध और आदेश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कमौके जघन्य स्थितिबन्धका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिबन्धका कितना काल है ? एक अनादि-अनन्त भङ्ग है और दूसरा सादि । उनमेंसे जो सादि भङ्ग है, उसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। आयु कर्मका काल उत्कृष्ट के समान है।
विशेषार्थ-सात कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध क्षपकश्रेणिमें होता है और वह अन्तर्मुहूर्त काल तक होता रहता है। इसीसे सात कौंके जघन्य स्थितिबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। यद्यपि सात कर्मोका अनादि कालसे अजघन्य स्थितिबन्ध ही होता है, पर जिसने अर्धपुद्गल परिवर्तन कालके प्रारम्भमें उपशमश्रोणिपर आरोहण किया है,उसके उनका अजघन्य स्थितिबन्ध सादि होता है। अब यदि यह अजघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त काल तक रह कर पुनः श्रोणि पर आरोहण करनेसे छूट जाता है,तो इसका
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