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________________ महाबन्ध राजा बोला-भन्ते! क्या कारण है, कि सभी आदमी एक ही तरह के नहीं होते? कोई कम आयुवाले, कोई दीर्घ आयुवाले, कोई बहुत रोगी, कोई नीरोग, कोई भद्दे, कोई बड़े सुन्दर, कोई प्रभावहीन, कोई बड़े प्रभाववाले, कोई गरीब, कोई धनी, कोई नीच कुलवाले, कोई ऊँच कुलवाले, कोई मूर्ख, कोई बुद्धिमान क्यों होते हैं? स्थविर बोले-महाराज! क्या कारण है कि सभी वनस्पतियाँ एक-सी नहीं होती? कोई खट्टी, कोई नमकीन, कोई तिक्त, कोई कड़वी, कोई कषायली और कोई मधुर क्यों होती हैं?" भन्ते! मैं समझता हूँ कि बीजों की भिन्नता के कारण ही वनस्पतियों में भिन्नता है। महाराज! इसी प्रकार सभी मनुष्यों के अपने-अपने कर्म भिन्न-भिन्न होने से वे सभी एक ही प्रकार के नहीं हैं। महाराज! बुद्धदेव ने भी कहा है-हे मानव! अपने कर्मों का सभी जीव उपभोग करते हैं। सभी जीव अपने कर्मों के स्वामी हैं। अपने कर्मों के अनुसार नाना योनियों में जन्म धारण करते हैं। अपना कर्म ही अपना बन्धु है, अपना आश्रय है। कर्म से ही लोग ऊँचे-नीचे हुए हैं। भन्ते-“आपने ठीक कहा।" इस प्रकार दार्शनिक साहित्य के अवगाहन से और सामग्री प्राप्त होगी जो यह ज्ञापित करेगी कि कर्मसिद्धान्त की किसी-न-किसी रूप में दार्शनिक जगत् में अवस्थिति अवश्य है। जैनवाङ्मय में कर्मसिद्धान्त पर बड़े-बड़े ग्रन्थ बने हैं। उनसे विदित होता है कि जैनसिद्धान्त में कर्म का सुव्यवस्थित, शृंखलाबद्ध तथा विज्ञानदृष्टिपूर्ण वर्णन किया गया है। जैनदर्शन में कर्म जैन दृष्टि से कर्म पर विचार करने के पूर्व यदि हम इस विश्व का विश्लेषण करें, तो हमें सचेतन (जीव), तथा अचेतन (अजीव) ये दो तत्त्व उपलब्ध होते हैं। पुद्गल (matter), आकाश, काल तथा गमन और स्थिति के माध्यमरूप धर्म और अधर्म ये पाँच द्रव्य अचेतन हैं। ज्ञान-दर्शन गुणसमन्वित जीव द्रव्य प्रकार छह द्रव्यों में जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य परिस्पन्दात्मक क्रियाशील हैं। धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चार द्रव्य निष्क्रिय हैं। इनमें प्रदेश-संचलन रूप क्रिया नहीं पायी जाती। इनमें अगुरुलघु गुण के कारण षड्गुणीहानिवृद्धिरूप परिणमन अवश्य पाया जाता है। इस परिणमन को अस्वीकार करने पर द्रव्य का स्वरूप परिणमनहीन कूटस्थ बन जाता है। ___ इसी बात को पंचाध्यायीकार दूसरे शब्दों में प्रकट करते हैं "भाववन्तौ क्रियावन्तौ द्वावेतौ जीवपुद्गलौ। तौ च शेषचतुष्कं च षडेते भावसंस्कृताः ॥ live long and some are short lived; some are hale and some weak, some comely and some ugly; some powerful and some with no power; some rich, some poor; some born of noble stock, some meanly some wise born; and some foolish.' To whom Nagasena the Elder made answer : ___ How comes it that all plants are not alike? Some have a sour taste and some are salt, some are acid, some bitter and some sweet'. 'It must be, I take it, reverend sir, that they spring from various kinds of seed.' ___ Even so, O Maharaja, it is beccause of differences of action that men are not alike: for some live long, and some are short-lived; some are hale and some weak; some comely and some ugly; some powerful, and some without power; some rich, some poor; some borm of noble some meanly born; stock, some wise and some foolish.' - The Heart of Buddhism, p. 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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