________________
प्रस्तावना
कन्दपद्य महनीय गुणनिधानं, सहजोन्नतबुद्धिविनयनिधियेन नेगब्दं महि बिनुतकित्ते कित्तित (मही) महिमानं मानिताभिमानं सेनम् ॥४॥ विनयद-शीलदोल गुणदोलादिय पेंपिन पुडिजंमनोजनरतिरूपि नोल्यनिलिसिर्द-मनोहरमप्पुदोंदुरूपिनमने दानदा (सा) गरमेमिप्प वधूतमे यप्प संदसेनन सति मल्लिकब्बेगे धरित्रियोलारि सद्गुणंगलिं ॥५॥ सकलधरित्रीविनुत-प्रकटितयशे मल्लिकब्बे बरेयिसि सत्पुण्याकर महाबन्धद पुस्तकम श्रीमाघनंदि मुनिपति गित्तल् ॥६॥
प्रदेशबन्धाधिकार के अन्त की प्रशस्ति
कन्दपद्य श्रीमलधारिमुनीन्द्रपदामलसरसीरुहशृंगनमलिकित्ते। प्रेमं मुनिजनकैरवासोमनेनल्माघनंदियतिपतियेसेदं ॥१॥ जितपपंचेषु-प्रतापानलमलतरोत्कृष्टचरित्रराराजिततेतं भारती-भासुर-भासुरकुचकलशालीढ-भाभारनूला। यत् तारोदारहारं समदमनियमालंकृतं माघनंदिव्रतिनाथं शारदाभ्रोज्ज्वलविशदयशो-वल्लरी-चक्रवालम् ॥२॥ जिनवक्त्रांभोज-नीनिर्गत-हितनुतराद्धान्तकिंजल्कसुस्वादन... ... ... ... ... जपदनत भूपेन्द्रकोटीरसेना। तिनिकायभ्राजितांघ्रिद्वयनखिल-जगद्व्यनीलोत्पलाल्हादनताराधीशनें केवलमें भुवनदोल् माघनंदिव्रतीन्द्रम् ॥३॥ वरराद्धान्तामृतांभोनिधितरलतरंगोत्करक्षालितांत:करणं श्रीमेघचंद्रव्रतपतिपपंकेरुहासक्तषट्चरणं ॥ ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... त्स। च्चारणं सैद्धान्तिकाग्रेसरनेने नेगदंमाघनंदिव्रतीन्द्रम् ॥४॥ श्री पंचमियं नोंतुद्यापनमं माडि बरेसि राद्धांतमना रूपवती सेनवधू जितकोपं श्रीमाघनंदियतिपतिगित्तल् ॥५॥
कर्मबन्धमीमांसा
“जह भारवहो पुरिसो वहइ भरं गेहिऊण कावडियं । एमेव वहइ जीवो कम्मभरं कायकावडियं ॥ -गो. जी., गा. २०१
. १. जैसे कोई बोझा ढोनेवाला पुरुष काँवड़ को ग्रहण कर बोझा ढोता है, इसी प्रकार यह जीव शरीर रूप काँवड़ में
कर्म-भार को रखकर ढोता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org