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________________ ६४ महाबन्ध स्थितिबन्धाधिकार के अन्त की प्रशस्ति नमस्सिद्धेभ्यः। नमो वीतरागाय शान्तये यो दुर्जयस्मरमदोत्कटकुम्भिकुम्भसंचोदनोत्सुकतरोग्र-मृगाधिराजः। शल्यत्रयादपगतस्त्रयगौरवारिः संजातवान्स भुवने गुणचन्द्रसूरिः ॥१॥ दुर्वारमारमदसिन्धुरसिन्धुरारिः शल्यत्रयाधिकरिपुस्त्रयगुप्तियुक्तः। सिद्धान्तवार्धिपरिवर्धन-शीतरश्मिः श्रीमाघनन्दिमुनिपोऽजनि भूतलेऽस्मिन् ॥२॥ स्रग्धरावृत्तम् (कन्नड़) वरसम्यक्त्वद-देशसंयमद-सम्यग्बोधदत्यन्तभासुरहारत्रिकसौख्यहेतु-वेनिसिर्दा-दानदौदार्यदेल्तरदिं गी (दी) तने जन्मभूमि येनुतं सानंददिक्कतुभूभरमेल्लं पोगकुत्तमिर्पदभिमानाधीननं सेननम् ॥३॥ सुजनते सत्यमोलपुदयेशील-गुणोन्नति पेंपु जैन-मार्गज गुणमेंब सद्गुणमिवत्यधिक तनगोप्पनूतनधर्मजनिवनेंदु कित्ते सुमतीधरे मेदिनि गोप्पे तोबेचित्तजसमरूपनं नेगलद 'सेनन' नुद्धगुणप्रधानम् ॥५॥ कन्नड़ कन्दपद्य अनुपमगुणगणदतिवर्मन शीलनिदानमेसेव जिनपदसत्कोकनद-शिलीमुखियेने मांतनदिदं 'मल्लिकब्बे ललनारत्नम् ॥६॥ आवनिता रत्नदो. पेंपावंगं पोगललरिद जिनपजये नानाविधद-दानदमलिन-भावदोला 'मल्लिकब्बेयं' पोल्ववरार श्री पंचमियं नोंतुद्यापनमं माडि बरेसि रांद्धांतगना [राद्धांतमना]। रूपवती 'सेनवधू' जितकोपं श्रीमाघनंदियतिपति-गित्तल् ॥७॥ अनुभागबन्धाधिकार के अन्त की प्रशस्ति स्रग्धरावृत्तम् जितचेतोजातनुर्वीश्वर-मुकुटतटोघृष्टपादारविन्दद्वितयं वाक्कामिनी-पीवरकुचकलशालंकृतोदारहारप्रतिमं दुर्झरसंसृत्यतुल-विपिनदावानलं माघनन्दिवतिनाथं शारदाभ्रोज्ज्वलविशदयशोराजिता शान्तकान्तम् ॥१॥ कन्दपद्य भावभवविजयि-वरवाग्देवीमुखनूलरत्नदर्पनानम्नावनि-पालकनेनिसिद-नला विश्रुतकित्ते माघनंदिमुनीन्द्रम् ॥२॥ महास्रग्धरावृत्तम् वरराद्धान्तामृताम्भोनिधि-तरल-तरंगोत्कर-क्षालितान्तःकरणं श्रीमेघचन्द्रव्रतिपतिपदपंकेरुहासक्तसत्स (त्ष) ट्चरणं तीव्र प्रतापोद्धृत-विततबलोपेत-पुष्पेषुभृतसंहरणं सैद्धान्तिकाग्रेसरनेने नेगल्दं माघनन्दिव्रतीन्द्रम् ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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