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महाबन्ध
णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं' सूत्र लिखा है उसे कौन-सा मंगल माना जाए? वेदना खण्ड में गणधर-रचित 'णमोजिणाणं' आदि सूत्र उद्धृत होने से जैसे अनिबद्ध मंगल है, उसी प्रकार 'णमो अरिहंताणं' आदि को भी पारिभाषिक अनिबद्ध मंगलरूपता प्राप्त होती है।
शंका-इस सम्बन्ध में शंकाकार कहता है कि यह मान्यता भ्रमपूर्ण है। णमोकार मन्त्र निबद्ध मंगल है, ऐसा वीरसेन स्वामी ने जीवट्ठाण की टीका में लिखा है- 'इदं पुण जीवट्ठाणं णिबद्धमंगलं' । (पृ. ७, ताम्र पत्र प्रति)-यह जीवट्ठाण निबद्ध-मंगल है, अतः यह पुष्पदन्त आचार्यकृत है। यह उनसे पूर्व में रचित मंगल नहीं है।
समाधान-यह धारणा भ्रान्त है। खण्डागम के प्रथम खण्ड का नाम जीवट्ठाण है। वह ग्रन्थ निबद्ध मंगल अर्थात् पारिभाषिक निबद्ध मंगल रूप नहीं है। वहाँ निबद्ध मंगल शब्द बहुव्रीहि समास रूप है; 'निबद्ध मंगलं जत्थ एवंभूतं जीवट्ठाणं' -जीवट्ठाण ग्रन्थ मंगल युक्त है। यदि निबद्धमंगल रूप पारिभाषिक मंगल अपेक्षित होता तो पाठ होता-'इदं जीवट्ठाणं सणिबद्ध-मंगलं'। किन्तु ग्रन्थगत पाठ है-'जीवट्ठाणं णिबद्धमंगलं'। अतः बहुव्रीहि समास की अपेक्षा जीवट्ठाण मंगल युक्त है, इतना ही अर्थ होता है। इससे इस कथन के आधार पर णमोकार मन्त्र को पुष्पदन्ताचार्य की कृति मानना अनुचित है। जिस तरह ‘णमोजिणाणं' आदि वेदना खण्ड के प्रारम्भ में निबद्ध सूत्र गौतम गणधर रचित हैं, वही बात णमोकारमन्त्र के विषय में भी है।
प्रश्न-'जीवद्वाणं णिबद्धमंगलं'-इन शब्दों-द्वारा जीवदाण रूप प्रथम ग्रन्थ में निबद्ध मंगलं' शब्द देने का क्या प्रयोजन है?
समाधान-टीकाकार का अभिप्राय यह है कि ग्रन्थ के आरम्भ में मंगल होना चाहिए-इस सामान्य शिष्टाचार की मान्यता का परिपालन जीवट्ठाण में हुआ है। उसका उल्लंघन नहीं हुआ है। यह उन्होंने सूचित किया है।
प्रश्न-जब मंगल के निबद्ध, अनिबद्ध ये दो भेद जीवट्ठाण में किये गये, तब आचार्य ने टीका में वेदना खण्ड के समान णमोकार मन्त्र को अनिबद्ध मंगल क्यों नहीं कहा? यदि णमो जिणाणं' आदि मंगल सूत्रों के समान णमोकार मन्त्र को भी अनिबद्ध मंगल कह देते तो भ्रम ही उत्पन्न न होता।
समाधान-णमोकार मन्त्र निबद्ध मंगल है या अनिबद्ध है, यह चर्चा टीकाकार ने नहीं की; क्योंकि णमोकार मन्त्र अनादि मूल मन्त्र रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध है, अतः उसके विषय में चर्चा करना धवलाकार को अनावश्यक प्रतीत हुआ। ‘णमो जिणाणं' आदि मंगल सूत्रों के कर्तृत्व के विषय में अवबोध न रहने से वीरसेन स्वामी ने अपनी वेदना खण्ड की टीका में यह स्पष्ट किया कि ये मंगल सूत्र उद्धृत किये गये हैं, अतः ये अनिबद्ध मंगल हैं, अर्थात् भूतबलि स्वामी की रचना नहीं है। जहाँ सन्देह या भ्रम की सम्भावना हो, वहाँ स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है।
प्रश्न-यदि णमोकार मन्त्र अनादि मूल मन्त्र है तथा वह द्वादशांग वाणी का अंग है, तो णमोकार मन्त्र को पुष्पदन्त आचार्यरचित सूचित करने के लिए जो मुद्रित धवलाटीका के प्रथम खण्ड में आदर्श प्रतियों के पाठ में परिवर्तन किया गया, वह कैसा है?
समाधान-आदर्श प्रतियों में जो पाठ हैं, उसके अर्थ में पूर्ण संगति बैठने से उसमें फेरफार करने की कोई भी आवश्यकता नहीं थी। उसमें परिवर्तन करने का ही यह फल हुआ, कि जब से धवला टीका हिन्दी में मुद्रित हई, तब से कोई-कोई लोग इस भ्रम में आ गये कि णमोकार मन्त्र पुष्पदन्त आचार्य की रचना है तथा उसे अनादि मूल मन्त्र मानना ठीक नहीं है। मूडबिद्री की ताड़पत्र की प्रतियों में इस प्रकार पाठ है- 'जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण कयदेवदा-णमोक्कारो तं णिबद्धमंगलं' इसका पाठ इस प्रकार बदला गया-'जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धदेवदा-णमोक्कारो तं णिबद्धमंगलं।'
मूल पाठ यह था-'जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धो देवदा-णमोक्कारो तमणिबद्धमंगलं।'
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