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महाबंधे बंधगा जीवा असंखेजगु० । साद-हस्स-रदि०-जस० बंधगा जी० असंखे० गु० । असादअरदि-सो० अजस० बंधगा जीवा संखेजगु० । मणुसग० ओरालि० बंधगा जीवा विसे । अपच्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसे०। पच्चक्खाणा०४ बंध० जीवा विसे । सेसाणं बंधगा जीवा सरिसा विसे० । उवसम-सं० -सव्वत्थोवा आहार बंधगा जीवा। देवगदि-वे उव्विय-बंधगा जी० असंखेजगु० । उरि ओधिभंगो।।
३४७. सासणे-सव्वत्थोवा मणुसायु-बंधगा जीवा । देवायु-बंधगा जीवा असंखेजगु० । देवगदि-वेउवि० बंधगा जी० असंखे० गुणा । तिरिक्खायु-बंधगा जी० असंखे० गुणा । मणुसगदि-बंधगा जी० संखेजगुणा । पुरिसवे. बंधगा जीवा संखे० गुणा । साद-हस्स-रदि-जस० बंध० जीवा विसे० । इत्थिवे० बंधगा जी० संखेजगुणा । असाद-अरदि-सो० अज० ५० जीवा विसेसा० । अथवा असाद-अरदि-सो० अज० बंधगा जीवा संखेजगुः । इत्थिवे. बंधगा जीवा विसेसा० । तिरिक्खगदि० बंधगा जी० विसे । णीचागो० बंधगा जी. विसे० । ओरालि० बंधगा जी० विसे । बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। साता, हास्य, रति, यशःकोर्तिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । असाता, अरति, शोक, अयशःकीर्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति, औदा. रिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक
त्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक है। शेष प्रकृतिके बन्धक जोव समानरूपसे विशेषाधिक हैं।
उपशमसम्यक्त्वमें - आहारक शरीरके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । आगेकी प्रकृतियोंमें अवधिज्ञानका भंग है।
विशेषार्थ-क्षायिक सम्यक्त्वमें, आहारक शरीरके बन्धकोंकी अपेक्षा देवायुके बन्धकोंको संख्यातगुणा कहा है। वेदक सम्यक्त्वमें आहारक शरीरके बन्धकोंकी अपेक्षा मनुष्यायुके बन्धकोंको संख्यातगुणा कहा है। उपशम सम्यक्त्वमें आयुका बन्ध नहीं होनेसे किसी भी आयुके बन्धकका कथन नहीं किया गया है। इन तीनों सम्यक्त्वोंकी' विशेषता ध्यान देने योग्य है।
३४७. सासादनसम्यक्त्वमें - मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं । देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । तियंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । साता, हास्य, रति, यशःकीर्तिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। असाता, अरति, शोक, अयशःकीर्तिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अथवा असाता, अरति, शोक, अयशाकीर्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तियंचगतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
१. "णवरि य सव्वुवसम्मे परसुरआऊणि णत्थि णियमेण। गो० क०,१२० गाथा । उपशमसम्यग्दृष्टीनां तिर्यग्मनुष्यगत्योर्दैवायुषोनरकदेवगत्योर्मनुष्यायुषश्वाबन्धादुभयोपशमसम्यक्त्वे तवयस्याप्यभावात् ।" -गो० क०सं० टीका,पृ० ११८ ।
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