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पय डिबंधा हियारो
३७५ संखेजगु० । देवायु-बंधगा जीवा विसे० । देवगदि-वेउबि० बंधगा जीवा असंखेजगुः । इत्थिवे. बंधगा जीवा असंखेजगु० । णवुस० बंधगा जीवा संखेजगु० । णीचागो० बंधगा जीवा विसे० । मिच्छत्त-बंधगा जीवा विसे । थोणगिद्धि३ बं०, अणंताणुबं०४ बंधगा विसे । हस्स-रदि-बंधगा जीवा संखेजगु० । जस० बंधगा जीवा विसे । साद-बंधगा जीवा विसेसा० । असाद-अरदि-सोग] अज० बंधगा जीवा संखेजगुणा । उच्चागो० बंधगा जीवा विसेसा० । पुरिस. बंध० जीवा विसेसा० । मणुसग० ओरालि० बंधगा जी० विसे० । अपच्चक्खाणा०४ बंध० जीवा विसेसा० । पच्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसा० । उवरि ओषभंगो। भवसिद्धि-मूलोघं । अब्भवसिद्धि-मदिभंगो। णवरि मिच्छत्त-सोलस-कसा० एकत्थ भाणिदव्वा ।
३४६. सम्मादिट्ठि-ओधिभंगो। खड्ग-सम्मा०-सव्वत्थोवा आहार० बंधगा जीवा । देवायु-बंध० जी० संखेज० । मणुसायु-बंधगा जीवा विसे । देवगदि-वेउवि० बंधगा जीवा विसे । उवरि ओधिभंगो। वेदगे-सव्वत्थोवा आहार० बं० जीवा । मणुसायुबंधगा जीवा संखेजगु०। देवायु-बंधगा जीवा असंखेज्जगु० । देवगदि-वेउवि० संख्यातगुणे हैं । देवायुके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेद के बन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। नीचगोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । स्त्यानगृद्धित्रिकके बन्धक जीव और अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। यशःकीर्तिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। साताके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । असाता, अरति, [ शोक, ] अयश कीर्ति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उच्चगोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। पुरुपवेद के बन्धक जीव विशेषाधिक है। मनुष्यगति, औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक है । अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । आगेकी प्रकृतियोंमें - ओघवत् भंग जानना चाहिए।
भव्यसिद्धिकोंमें - मूल ओघवत् जानना चाहिए । अभव्य सिद्धिकों में - मत्यज्ञानवत् भंग जानना चाहिए। विशेष, मिथ्यात्व और • सोलह कपायके बन्धकोंका भंग एक साथ लगाना चाहिए।
विशेष-यहाँ मिथ्यात्वके साथ १६ कषायका सदा बन्ध होता है। इस कारण उनका पृथक् भंग नहीं कहा है।
३४६. सम्यग्दृष्टियों में - अवधिज्ञानके समान भंग जानना चाहिए। क्षायिकसम्यक्त्वमें - आहारक शरीरके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। देवायुके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । आगे अवधिज्ञानके समान भंग है।
वेदकसम्यक्त्वमें - आहारक शरीरके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवगति, वैक्रियिक शरीर के.
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