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पयडिबंधाहियारो
३४३ वेदेसु-सव्वत्थोवा पंचणा० बंधगा० । अबंधगा जीवा अणंतगुणा । एवं चदुदंसणा०, साद० जस० उच्चगो० पंचंत० । सव्वत्थोवा कोध-संजल० बंधगा । माण-संजल. बंधगा जीवा विसेसा० । माया-संज. बंधगा जीवा पिसेमा० । लोभसंज० बंध० जीवा विसेसा० । तस्सेव अबंधगा जीवा अणंतगुणा। मायासंज. अबंधगा जीवा विसे । माण-संज० अबं० जीवा विसे० । कोध-संज० अबंध० जीवा विसेसा० ।।
३१६. कोधे-णqसकभंगो। णवरि णव णोकसायं ओघं। माणे-सव्वत्थोवा कोध-संज० अ० जीवा । सेसं ओघं । णवरि कोध बंधगा जीवा विसे । माण-मायलोभ-संजलणबंधगा जीवा विसेसा । मायाए-सव्वत्थोवा माणसंज० अबं० जीवा । सेसं माणकसाइ-भंगो। णवरि मायलोभसंज. बंधगा जीवा विसे । लोभे-मोह० ओघं । सेसं कोधभंगो । अफसाइ-सबत्योवा साद-बंध० । अबंधगा जीवा अणंतगु० । एवं केवलणा० केवलदंसणा० ।
___३१७. मदि० सुद०-सव्वत्थोवा मिच्छत्त-अबंधगा जीवा । बंधगा जीवा
- अपगतवेदियोंमें-५ ज्ञानावरणके बन्धक जाव सर्वस्तीक हैं। अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार ४ दर्शनावरण, साता वेदनीय, यश कीति, उच्चगोत्र और ५ अन्तरायों के बन्धकों,अबन्धकोंमें भी जानना चाहिए।
क्रोध-संज्वलनके बन्धक जीव सवस्तोक हैं। मान संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। माया-संज्वलन के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। लोभ-संघलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। लोभ संज्वलन के अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। माया-संज्वलनके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मान-संज्वलनके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। क्रोध संचलनके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
३१६. क्रोध में नपुंसकवेदके समान जानना चाहिए। विशेष यह है कि ९ नोकषायोंके बन्धकोंमें ओघवत् जानना चाहिए।
मानमें-क्रोध-संज्वलनके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। शेष प्रकृतियों में ओघवत् जानना चाहिए। विशेष, क्रोधके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मान, माया, लोभ संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं ।
___ मायामें-मान-संचलनके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। शेष प्रकृतियों में मान-कषायियोंके समान भंग जानना । विशेष यह है कि माया, लोभ संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
लोभमें-मोहनीयके प्रकृतियोंमें ओघके समान भंग है। शेष प्रकृतियोंमें क्रोधके समान भंग हैं।
अकषाय जीवोंमें-साता वेदनीयके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं । अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । इसी प्रकार केवलज्ञानी, केवलदर्शनवाले जीवोंमें जानना चाहिए ।
३१७. मत्यज्ञान, श्रुताज्ञानमें-मिथ्यात्वके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं।
विशेषार्थ-मत्यज्ञान तथा श्रुताज्ञान में मिथ्यात्व तथा सासादन गुणस्थान पाये जाते
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