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________________ महाबंधे ३४२ अबंधगा जीवा । देवगदिबंधगा जीवा असंखेज्ज० । णिरयगदिबंधगा जीवा संखेज। मणुसगदिबंधगा संखेज्ज० । तिरिक्खगदिवंधगा जीवा संखेज्जगुणा । चदुण्णं गदीणं बंधगा जीवा विसे० । सव्वत्थोवा पंचजादि-अबंधगा जीवा । चदुरिंदिय-बंधगा जीवा असंखेज० । तीइंदि० बंध० जीवा संखेज० । बीइंदिय-बंधगा जीवा संखेज० । एइंदि० बंधगा जीवा संखेन्ज । पंचजादीणं बंधगा जीवा विसेसाहिया। पंचसरीर० छसंठाणं तिण्णि-अंगो० छस्संघ० दोविहा० दोसरं मणजोगिभंगो। सव्वत्थोवा अगु० उप० अबंधगा जीवा । परघादुस्सा० अबंध० जीवा असंखेज । बंधगा जीवा संखेजः । अगुरु० उप० बंधगा जीवा विसेसा० । तसथावरादि पंचयुगल-तित्थयर-दोगोदाणं मणजोगिभंगो। णवरि जस-अजस० दोगोदाणं साधारणेण अबंधगा पत्थि। सव्वस्थोवा बादरादि-तिण्णि-युगल-अबंधगा जीवा । सुहुमादितिण्णि युगल (१) बंधगा जीवा असंखेज । बादरादि-तिण्णि युगल (१) बंधगा जीवा संखेजगुणा । एवं पुरिसवे० । णqसगवे. ओघभंगो । णवरि विसेसो वि इत्थिवेदेण साधिजदि। अवगद चारों गति के अबन्धक जाव सर्वस्तीक हैं। देवगति के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। नरक गतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । तिर्यच गति के बन्धक जीव संख्यातेगुणे हैं। चारों गतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।। पंच जातियोंक अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। चौइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । त्रीइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। दो इन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । एकन्द्रिय जाति के बन्धक जाव संख्यातगुणे हैं। पाँचों जातियोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। विशेष-यहाँ पंचेन्द्रिय जांतिके बन्धकोंका प्रमाण वर्णन करनेसे छूट गया प्रतीत होता है। ५शरीर, ६ संस्थान, ३ अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरके बन्धक जीवोंमें मनोयोगियोंके समान भंग जानना चाहिए। अगुरुलघु, उपघातके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। परघात, उच्छ्वासके अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अगुरुलघु, उपघातके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स, स्थावर, स्थिरादि ५ युगल, तीर्थकर,२ गोत्रके विषयमें मनोयोगियों में समान भंग हैं। विशेष यह है कि यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति तथा दोनों गोत्रोंके सामान्यसे अबन्धक नहीं हैं। बादरादि तीन युगलके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। सूक्ष्मादि तीन युगल (?) के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। बादरादि तीन युगल (?) के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। विशेष-यहाँ सूक्ष्मादि तीन तथा बादरादि तीनके बन्धकोंके साथमें युगल शब्द अधिक प्रतीत होता है। कारण सूक्ष्मादि तीन युगलके ही अन्तर्गत बादरादि तीन प्रकृतियाँ हैं, एवं बादरादि तीन युगलमें सूक्ष्मादि तीन प्रकृतियाँ हैं। पुरुषवेदमें-स्त्रीवेदके समान भंग है। ___ नपुंसकवेदमें-ओघवत् भंग है। विशेष, स्त्रीवेदसे जो विशेषता हो, उसे निकाल लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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