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पडबंधाहियारो
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विसेसा० । सव्वत्थोवा तिष्णं गदीणं अबंधगा जीवा । देवगदि-बंधगा जीवा संखेज्ज० । मग दिबंधगा जीवा अणंतगु० । तिरिक्वगदिबंधगा जीवा संखेज्जगुणा । एदेण कमेण णेदव्वं ।
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३१५. इत्थि वेद ० - सव्वत्थोवा णिद्दापचलाणं अबंधगा जीवा । थीण गिद्धि ३ अधगा जीवा असंखेज्ज० । बंधगा जीवा असंखेज्ज० णिद्दापचलाणं बंधगा जीवा विसेसा० । चदुदंसण० बंधगा जीवा विसेसा० । वेदणीयं मणभंगो। सव्वत्थोवा पच्चक्खाणा० चदु० अबंधगा जीवा । अपच्चक्खाणा०४ अबंधगा जीवा असंखेज्ज० । अता ०४ अधगा जीवा असंखेज्ज० । मिच्छत्त-अबंध० जीवा विसेसा० | बंधगा जीवा असंखेज्ज० । अनंताणु ०४ बंध० जीवा विसेसा० । अपच्चक्खाणा ०४ बंधगा जीवा विसेसा० । पञ्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसा० । चदुसंजलग-बंधगा जीवा विसेसा० । सव्वत्थोवा पुरिसवेद-बंधगा जीवा । इत्थिवेद-बंधगा जीवा संखेज्जगु० । इस्सर दि-बंधगा जीवा संखेज्जगु० । अरदिसोग-बंधगा जीवा संखेज्ज० । ण स ० बंधा जीवा विसा० । भय-दुगुं० बंधगा जीवा विसेसा० । गत्रणोक० बंधगा जीवा विसेसा० । आयुचदुक्क-पंचिंदि० - तिरिक्ख-पजत्तभंगो । सव्वत्थोवा चदुष्णं गदीणं
हैं। तीनों गतिके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । देवगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । मनुष्यगतिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । तिर्यंचगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इस क्रमसे अन्यत्र जानना चाहिए।
विशेष- - इस योग में नरकगतिका बन्ध नहीं होता है ।
३१५. स्त्री वेद में - निद्रा, प्रचलाके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं । स्त्यानगृद्धि त्रिकके अबन्धक जीव असंख्यात गुणे हैं । बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । निद्रा, प्रचलाके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। चारों दर्शनावरणके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं ।
विशेष - यहाँ दर्शनावरण ४ के अबन्धक जीव नहीं पाये जाते । वे उपशान्तकषाय गुस्थान में पाये जाते हैं ।
वेदनीयके बन्धक जीवों में मनोयोगी के समान भंग हैं ।
प्रत्याख्यानावरण ४के अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४के अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक जीव असंख्यात गुगे हैं। मिथ्यात्व के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं । बन्धक जीव असंख्यात गुगे हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । ४ संज्वलन के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
पुरुषवेदके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं । स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । अरति शोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नपुंसक वेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । नोकत्रायके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । ४ आयुके बन्धकों में पंचेन्द्रिय तिर्यंचपर्याप्तकका भंग जानना चाहिए ।
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