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________________ asबंधाहियारो ३३९ 1 बंधा जीवा विसेसाहिया । संठाणं अंगोवं० संघड० वण्ण०४ आदा-उज्जो० दोविहाय० तसथावरादिछयुगल- णिमिण- तित्थयर० पंविदियभंगो । गदिभंगो आणुपुव्वि० । अगु० उप० अ० जीवा थोवा । परधादुस्सा० अबंधगा जीवा असंखेज ० | बंधगा जोवा असंखेज्ज • । अगु० उप० बंधगा जोवा विसेसा० । सव्वत्थोवा बादरादि- तिष्णियुगाणं अबंधगा जीवा । सुहुमादितिष्णिबंधगा जीवा असंखेज्ज | बादरादि-तिण्णि बंधा जीवा असंखेज्जगु० । दोष्णं बंधगा जीवा विसेसा० । ० ३११. वचिजोगि-असच्चमोसवचि ० तसपज्जत्तभंगो। काजोगोसु ओरालियका०ओघभंगो, किंचि विसेसा० (सो० ) । ओरालिय- मिस्से - सव्वत्थोवा छमणा० अबंधगा जीवा । थी गिद्ध३ अबंधगा० संखेज ० । अबंधगा (बंधगा) जीवा अनंतगु० । दंसणा बंधगा जीवा विसेसा० । सव्वत्थोवा बारसक० अबंधगा जीवा । अणंताणु ०४ अबंधगा० संखेज० | मिच्छ० अबंधगा जीवा असंखेज ० । बंधगा जीवा अगुगा । अतानुबंध - ४ बंधगा ० विसेसा० । बारसक० बंधगा० जीवा विसेसा० । ० संख्यातगुणे हैं । तैजस, कार्मण के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । संस्थान, अंगोपांग, संहनन, वर्ण ४, आतप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रस-स्थावर तथा स्थिरादि ६ युगल, निर्माण और तीर्थंकर के बन्धकों में पंचेन्द्रियके समान भंग जानना चाहिए । आनुपूर्वी गतिके समान जानना चाहिए । अगुरुलघु, उपघातके अबन्धक जीव स्तोक हैं। परघात, उच्छ्वासके अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । बन्धक जीव असंख्यात गुणे । अगुरुलघु उपघातके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। बादरादि तीन युगलों के अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । सूक्ष्मादि तीनके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । बादरादि तीनके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। ३११. वचनयोगी, असत्यमृषा वचनयोगी अर्थात् अनुभय वचनयोगी में त्रस पर्याप्तकके समान भंग हैं । काययोगियों तथा औदारिक काययोगियोंमें - ओघके समान भंग है । किन्तु उसमें जो विशेषता है उसे जानना चाहिए । औदारिक मिश्र में - ६ दर्शनावरणके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । स्त्यानगृद्धित्रिक के अन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक के अबन्धक ( बन्धक) जीव अनन्तगुणे हैं । ६ दर्शनावरणके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । विशेष - द्वितीय बार आगत स्त्यानगृद्धित्रिक के अबन्धक के स्थान में बन्धकका पाठ उपयुक्त प्रतीत होता है । अप्रत्याख्यानावरणादि बारह कषायके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । बारह कषायके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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