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________________ ३३८ महाबंधे बंधगा जीवा संखेज्ज० । एइंदिय-बंध० जीवा संखेज्जगुणा । तस-थावरादि चदुयुगलं [अ]बंधगा जीवा थोत्रा । तसादि०४ बंधगा जीवा असंखेज्ज । थावरादि४ बंधगा जीवा संखेज्जगु० । एदेण बीजेण णेदव्वं । पंचमण. तिण्णिवचि. छण्णं कम्माणं पंचिंदियभंगो। गवरि वेदणी० अबंधा गस्थि । मणुसायु: बंधगा जीवा थोवा। णिरयायुबंधगा जीरा असंखेजगुगा। देवायुबंधगा जीवा असंखज्ज। तिरिक्खा सुबंधगा जीवा असंखज्ज०। चदुआयु-बंधगा जीवा विसेसा० । अबंधगा जीवा संखज्जगुणा। चदुण्णं गदीणं अबंधगा जीवा थोवा । णिरयगदिबंधगा जीवा असंखज्ज । देवगदिबंधगा जीवा असंखेज्ज । मणुसगदिबंधगा जीवा संखेज्ज । तिरिक्खगदिबंधगा जीवा संखेजगु० । चदुण्णं गदीणं बंधगा जीवा विसेसा० । पंचणं जादीणं अबंधगा जीवा थोवा। चदुरिदिय-बंध० जीवा असंखेज्ज। तीइंदिय-बंधगा जीवा संखेज० । बीइंदि० बंधगा जीवा संखेज्ज । पंचिंदिय० बंधगा जीवा असंखेन । एइंदिय० बंधना जीवा संखेन्ज । पंचणं जादीणं बंधगा जीवा विसेसा० । पंवगं सरीराणं अबंधगा जीवा थोत्रा । आहारस० बंधगा जीवा संखेज्ज। वेउधिय. बंधगा जोवा असंखेज० । ओरालि० बंधगा जीवा संखेज्जगुणा । तेजाक. जीव संख्यातगुणे हैं । एकेन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स-स्थावरादि चार युगल के [अ]बन्धक जीव स्तोक हैं। सादि चारके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। स्थावरादि ४ के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इस बीजसे अर्थात् इस ढंगसे अन्य प्रकृतियों में जानना चाहिए । विशेष-त्रस-स्थावरादि चार युगलके समान शेष बचे स्थिर, शुभ, सुभगादि युगलोंका वर्णन जानना चाहिए। ५ मनोयोगी, ३ वचनयोगियोंमें ६ कोंके बन्धक जीवोंमें पंचेन्द्रियके समान भंग निकालना चाहिए । विशेष यह है कि वेदनीयके अबन्धक नहीं हैं। मनुष्यायुके बन्धक जीव स्तोक हैं । नरकायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । देवायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तिर्य चायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। चारों आयुके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। चारों गति के अबन्धक जीव स्तोक हैं। नरक गातके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवगतके बन्धक जीव असंख्यातगणे हैं। मनुष्य गतिके बन्धक जीव संख्यातगणे हैं। तियंचगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। चारों गतिके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। ___पाँचों जातिके अबन्धक जीव रतोक हैं। चौइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। त्रीन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगणे हैं। दोइन्द्रिय जातिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पंचेन्द्रिय जातिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। एकेन्द्रिय जाति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । पाँचों जातियोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। पाँचों शरीरके अबन्धक जीव स्तोक हैं। आहारक शरीरके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। औदारिक शरीरके बन्धक जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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