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________________ पयडिबंधाहियारो ३२५ २६८. आदेसेण-गदियाणुवादेण णिरयगदि-णेरइएसु-सव्वत्थोवा थीणगिद्धि० ३ अबंधगा जीवा, बंधगा जीवा असंखेजगुणा। छदंस० बंधगा जीवा विसेसाहिया । २६६. सव्वत्थोवा सादबंधगा जीवा, असादबंधगा जीव संखेनगुणा । दोण्णं बंधगा जीव विसेसाहिया। ३००. सव्वत्थोवा अणंताणुवं०४ अबंधगा जीवा। मिच्छत्त-अबंधगा जीवा विसे साहिया । बंधगा जीवा असंखेजगुणा। अणंताणुबंधि०४ बंधगा जीवा विसेसाहिया। पारसकसायाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । सव्वत्थोवा पुरिसवेदस्स बंधगा जीवा । इस्थिवेदस्स बंधगा जीवा संखेजगुणा। हस्सरदिबंधगा जीवा विसेसाहिया। णवंसकवेदस्स बंधगा जीवा संखेजगुणा। अरदिसोगाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । भयदु० बंधगा जीवा विसे। __३०१. सव्वत्थोवा मणुसायुबंधगा जीवा । तिरिक्खायुबंधगा जीवा असंखेजगुणा। दोणं आयुगाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया। अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा मणुसगदिबंधगा जीवा । तिरिक्खगदिबंधगा जीवा संखेजगुणा । दोणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । अबंधगा णस्थि । एवं दो आणु० दो विहाय. थिरादिछयुगलं दोगोदं च। समचदु० बंधगा जीवा सव्वत्थोवा। सेससंठाणं बंधगा जीवा २६८. आदेशसे-गति के अनुवाद से नरक गतिके नारकियों में स्त्यानगृद्धित्रिकके अयन्धक जीव सर्व स्तोक हैं बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। छह दर्शनावरणके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। विशेष-५ ज्ञानावरण, ५ अन्तरायके सर्व नारकी बन्धक हैं। अबन्धक नहीं है । इस कारण उनका अल्पबहुत्व यहाँ नहीं कहा है । उनका एक साथ निरन्तर बन्ध होता है । २६६. साताके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। असाताके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । _३००. अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। मिथ्यात्व के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषा. धिक हैं। १२ कपायोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव सर्व स्तोक है। स्त्रीवेदके बन्धक संख्यातगुणे हैं। हास्य, रतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अरति, शोकके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।। ३०१. मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । तियंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। दोनों आयुओंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। तियंचगति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं ; अबन्धक नहीं हैं । इसी प्रकार २ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, स्थिरादि छह युगल तथा दो गोत्रोंमें जानना चाहिए । समचतुरस्रसंस्थानके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। शेष संस्थानों के बन्धक जीव संख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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