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________________ ३२४ महाबंधे गुणा । तिण्णि अंगोवंगाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा वज्जरिसभसंघडणं बंधगा जीवा । वजणारायाणं बंधगा जीवा संखेजगुणा । णारायाण बंधगा जीवा संखेजगुणा। अद्धणारायाण बंधगा जीवा संखेजगुणा । खीलिय० बंधगा जीवा संखेजगुणा । असंपत्तसेवट्ट० बंधगा. जीवा संखेअगुणा । छस्संघडण-बंधगा जीवा विसेसाहिया। अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा वण्ण०४ णिमिण-अबंधगा जीवा, बंधगा जीवा, अणंतगुणा । यथागदि तथाआणुपुव्वि । सव्वत्थोवा अगुरु० उपघा० अबंधगा जीना । परघादुस्सा० बंधगा जीवा अणंतगुणा। अबंधगा जीवा संखेजगुणा । अगुरु० उपघा० बंधगा जीवा विसेसाहिया । सव्वत्थोवा आदावुजो० बंधगा जीवा, अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा पसत्थविहाय० सुस्सर० बंधगा जीवा । अप्पसत्थविहाय० दुस्सर० बंधगा: जीवा संखेजगुणा । दोणं चंधगा जीवा विसेसाहिया । अबंधगा जीवा संखेजगुणा । सव्वत्थोवा तसथावर-अबंधगा जीवा । तस० बंधगा जीवा अणंतगुणा । थावरबंधगा जीवा संखेजगुणा । दोण्णं बंधगा जीवा विसेसाहिया । एवं सेसाणं जुगलाणं गोदंतियाणं । सम्वत्थोवा तित्थयर-बंधगा जीवा । अबंधगा जीवा अणंतगुणा। सव्वत्थोवा पंचंतराइगाणं अबंधगा जीवा । बंधगा जीवा अणंतगुणा । जीव असंख्यातगुणे हैं। औदारिक अंगोपांगके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। तीनों अंगोपांगों के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वनवृषभसंहननके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। वज्रनाराचसंहननके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नाराचसंहननके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अर्धनाराचसंहननके बन्धक जीव संख्यात गुणे हैं। कीलित संहननके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। असंप्राप्तामृपाटिका संहननके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। छह संहननके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वर्णचतुष्क तथा निर्माणके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। इनके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। गतिके समान आनुपूर्वीका अल्पबहुत्व जानना चाहिए। अगुरुलघु, उपघातके अबन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। परघात, उच्छ्वासके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । अगुरुलघु, उपघातके अबन्धक जीव विशेषाधिक है। आतप, उद्योतके बन्धक जीव सर्वस्तोक है। अबन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । प्रशस्त विहायोगति, सुस्वरके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं । अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वर के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं , अवन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। बस स्थावर के अवन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। त्रसके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । स्थावर के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। दोनों के बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार गोत्र कर्म है अन्त में जिनके-ऐसे शेष युगलोंका क्रम जानना चाहिए। विशेष-बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, आदेय-सदृश नामकर्मको शेष युगल प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व त्रस स्थावर के समान जानना चाहिए। गोत्र कर्मका भी ऐसा ही है। तीर्थकर प्रकृतिके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं, अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। ५ अन्त. रायोंके अबन्धक जीव सर्व स्तोक हैं बन्धक जीव अनन्तगुणे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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