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________________ ३१४ महाबंधे खयोवसमिगो वा । मिच्छत्त० पारिणामि० । णिद्दापचला० भयदु. तेजाक० वण्ण०४ अगुरु० उप० णिमि० बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो? उवसमिगो वा खइगो वा । साद-बंधाबंधगा त्ति को भावो? ओदइगो भावो । असादबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो। अबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा। दोण्णं बंधगा त्ति को भावो? ओदइगो भावो। अबंधगा णस्थि । तिण्णं वेदाणं पत्तेगेण ओघं । णवरि पुरिस अबंधगा त्ति ओदइगो भावो। साधारणेण बंधा० ओदइगो भावो । अबंधगा णस्थि । हस्सादि०४ पत्तेगेण ओघभंगो । साधारणेण बंधगा तथा क्षायोपशमिक भाव है। विशेष, मिथ्यात्वके अबन्धकों के पारिणामिक भाव भी है । निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मणः, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औपशमिक तथा क्षायिक हैं। साताके बन्धकों अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक है । विशेष-यहाँ साताके अबन्धकोंके असाताके बन्धककी अपेक्षा औदायिक भाव कहा है। ___ असाताके बन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक हैं। दोनों के बन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक है। अबन्धक नहीं हैं। तीनों वेदोंका पृथक-पृथक रूपसे ओघवत् जानना चाहिए। विशेष यह है कि पुरुषवेदके अबन्धकोंमें औदयिक भाव है। सामान्यसे इनके बन्धकोंके औदयिक भाव है। अबन्धकोंका अभाव है । हास्यादि चारका प्रत्येकसे ओघवत् भंग जानना चाहिए । सामान्यसे हास्यादिके बन्धकों के औदयिक भाव है । अबन्धकोंके औपशमिक तथा क्षायिक भाव है । इस प्रकार शेष प्रकृतियोंमें ओघके समान भंग जानना चाहिए। ___विशेष-हास्यादिकके अबन्धक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें होंगे। उनके उपशम तथा झायिक चारित्रकी दृष्टिसे औपशमिक तथा क्षायिक भाव कहे हैं । ____ शंका-अनिवृत्तिकरणमें कर्मोंका उपशम न होनेसे औपशमिक भाव कैसे कहा जायेगा ? समाधान-उपशम शक्तिसे समन्वित अनिवृत्तिकरणके औपशमिक भाव मानने में आपत्ति नहीं है। इस प्रकार उपशम होनेपर उत्पन्न होनेवाला तथा उपशम होने योग्य कर्मों के उपशमनार्थ उत्पन्न हुआ भाव औपशमिक कहलाता है । अथवा, भविष्यमें उत्पन्न होनेवाले उपशम भाव में भूतकालका उपचार करनेसे अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें औपशामिक भाव वन जाता है। जैसे, सब प्रकारके असंयममें प्रवृत्त हुए चक्रवर्ती तीथकरके 'तीर्थकर' यह संज्ञाकरण बन जाता है। शंका-अनिवृत्तिकरणमें मोहनीयका क्षय न होनेसे क्षायिक भावका . उचित नहीं है। समाधान-मोहनीयका एकदेश क्षय करनेवाले बादरसाम्पराय सूक्ष्मसाम्पराय क्षपकों के भी कर्मक्षयजनित भाव पाया जाता है । कर्मक्षयके निमित्तभूत परिणाम पाये जानेसे अपूर्वकरण गुणस्थानमें भी शायिकभाव माना है । अथवा उपचारसे अपूर्वकरण संयत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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