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________________ पय डिबंधाहियारो ३१३ णवूस पारिणामियो भावो। पुरिस० बंधगा ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो ? ओदइगो वा खइगो वा। तिण्णं बंधगात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? खइगो भावो । एवं इत्थिभंगो तिरिक्खग० चदुसंठा० चदुसंघ० तिरिक्खाणु० उजो० अप्पसत्थ० दूभग-दुस्सर-अणा० णीचागोदं च । णवुसकभंगो चदुजादि-हुंडसंठा० असंपत्तसे० आदाव-थावरादि०४ । पुरिसभंगो चदुणोक० दोगदि० पंचिंदि० दोसरीर-समचदु. दोअंगो० वज्जरिसभ० दो-आणु० परपादुस्सा० पसत्थवि० तस०४ थिरादि दोणि युगलं सुभग-सुस्तर-आदे० उच्चागोदं च । एवं पत्तेगेण साधारणेण वि ओरालियमिस्स-भंगो । . २८०. इत्थिवेदेसु-पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० पंचंतराइ गाणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा णत्थि । थीणगिद्धि-तिय-मिच्छत्त-बारसक० बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? उवसमिगो वा खइगो वा अबन्धकोंमें पारिणामिक भाव भी पाया जाता है । _ विशेष-इसके अबन्धक सासादन गुणस्थानवी जीवोंको अपेक्षा पारिणामिक भाव कहा है। पुरुष वेदके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक है। अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक वा क्षायिक है। विशेष-इस योगमें पुरुषवेद के बन्धका अभाव प्रतर तथा लोकपूरण समुद्घातगत सयोगकेवलीके होगा, यहाँ मोह-शायजनित क्षायिक भाव है। अन्य वेदद्वयके बन्धककी अपेक्षा औदायिक भाव भी कहा है। ___ तीनों वेदोंके बन्धकों के कौन भाव है ? औदायिक है। अबन्धकोंके कौन भाव है ? शायिक है। विशेष-यहाँ सयोगी जिनकी अपेक्षा क्षायिक भाव कहा है। तिर्यंचगति, चार संस्थान, चार संहनन, तिय चानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, तथा नीच गोत्रका स्त्रीवेदके समान भंग जानना चाहिए। चार जाति, हुण्डक संस्थान, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, आतप तथा स्थावरादि चारमें नपुंसकवेदके समान भंग जानना चाहिए। चार नोकषाय, दो गति, पंचेन्द्रिय जाति, दो शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, दो अंगोपांग, वनवृषभसंहनन, दो आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चार, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्च गोत्रके बन्धकोंमें पुरुषवेदके समान भंग जानना चाहिए। प्रत्येक और सामान्यसे औदारिक मिश्रकाययोगके समान भंग जानना चाहिए। २८०. स्त्रीवेदमें'-५ ज्ञानाका ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, ५ अन्तरायोंके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक है; अवयक नहीं है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, बारह कषायके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक है। अबन्धकोंके कौन भाव है ? औपशमिक, क्षायिक १. वेदानुबादेन त्रिपु वैदेपु मिश्यादृष्टयादीनि अनिवृत्ति बादरस्थानान्तानि सन्ति । - स० सि०, पृ० ११ । ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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