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________________ ३११ पयडिबंधाहियारो ओदइगो वा खइगो वा। तिण्णं वेदाणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? खइगो भावो । इत्थि-णकुंस० भंगो दोआयु-दोगदि-चदुजादि-ओरालि. पंचसंठा० ओरालिय-अंगो० छस्संघ. दोआणु० आदावुजो० अप्पसत्थवि० थावरादि०४ भग-दुस्सर-अणा० णीचागोदं च । पुरिसवेदभंगो चदुणोक० देवगदि-पंचिंदि० वेउवि० समचदु० वेउवि० अंगो देवाणु० परघादुस्सा० पसत्थवि० तस०४ थिरादिदोण्णियुगलं सुभग-सुस्सर-आदेज-उच्चागोदं च । एवं पत्तेगेण साधारणेण वि। दो आयुबंधगा ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा पारिणामियो वा। एवं दो अंगो० छस्संघ० दो विहा० दो सर० किंचि विसेसो जाणिण णेदव्वं । सेसाणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो। अबंधगा ति को भावो ? खइगो भावो । तित्थयरं बंधगात्ति को मावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो वा खइगो वा । औदयिक वा क्षायिक भाव है। विशेष-पुरुष वेदके अबन्धक किन्तु स्त्री-नपुंसक वेदके बन्धकोंकी अपेक्षा औदायिक भाव कहा है। पुरुष वेदकी बन्धव्युच्छित्तियुक्त गुणस्थान इस योगमें सयोगकेवलीका होगा उस अपेक्षासे क्षायिक भाव कहा है। तीनों वेदोंके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? क्षायिक भाव है। विशेष-औदारिकमिश्रकाययोगमें तीनों वेदोंके अबन्धक सयोगी जिन होंगे, इस कारण उपशम भाव न कहकर, क्षायिक भाव ही कहा है। दो आयु, दो गति, चार जाति, औदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिक अंगोपांग, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावरादि चार, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय तथा नीचगोत्रके बन्धकोंका स्त्रीवेद, नपुंसक वेद के समान जानना चाहिए। हास्यादि चार नोकषाय, देवगति, पंचेंद्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक अंगोपांग, देवानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, बस चार, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा उच्चगोत्रमें पुरुषवेदके समान जानना चाहिए । इसी प्रकार प्रत्येक तथा सामान्यसे जानना चाहिए। दो आयुके बन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक वा पारि. णामिक हैं। विशेष-इस योगमें उपशम सम्यक्त्व न होनेसे तथा उपशम चारित्रका भी सद्भाव न होनेके कारण औपशमिक भाव नहीं कहा है। इस प्रकार दो अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वरके विषयमें किंचित् विशेषताको जानकर भंग निकाल लेना चाहिए। शेष प्रकृतियों के बन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? क्षायिक भाव है। तीर्थकर प्रकृतिके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है। अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक वा क्षायिक भाव है। विशेष-तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध न करनेवाले मिथ्यात्वीके दर्शन मोहनीयके उदयकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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