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________________ ३१० महाबंघे णत्थि । इत्थण सबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? ओदगो वा खइगो वा खयोवसमियो वा । णवरि णवंसगेसु पारिणामियो वि अत्थि । पुरिसवेदगे बंधगाति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? समाधान - यह सत्य है, किन्तु उपशम श्रेणी में मरनेवाले उपशमसम्यक्त्वीके औदारिक मिश्रकाययोग नहीं होता, कारण इनकी देवोंके सिवाय अन्यत्र उत्पत्तिका अभाव है । ( ध० टी०, भावाणु० पृ० २१९ ) । साताके बन्धकों, अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक भाव है । असात के बन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक भाव है। अबन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक वा क्षायिक भाव हैं | साता असाताके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है; अबन्धक नहीं है । विशेष - शंका - जब साताके बन्धकों-अबन्धकों में औदयिक भाव कहा, तब असाताके बन्धकों, अन्धकोंमें औदयिक भाव ही कहना था । यहाँ असात के अबन्धकोंमें औदयिकके साथ क्षायिक भाव क्यों कहा है ? समाधान —यहाँ यह ध्यान देना चाहिए कि औहारिक मिश्रयोगमें मिध्यात्व, सासादन, अविरत तथा सयोगकेवली गुणस्थान होते हैं । साताके अबन्धक अयोगकेवली ही होंगे, जिनने साताकी बन्ध-व्युच्छित्ति कर ली है । औदारिक मिश्रकाययोगमें अयोगकेवली गुणस्थान न होनेसे साता-असाताके युगलके अबन्धकोंका यहाँ अभाव कहा है । साता और असाता बन्धकोंके औदयिक भाव हैं। साताका बन्ध होनेपर असाताका बन्ध नहीं होता और असाताका बन्ध होनेपर साताका बन्ध नहीं होता, कारण ये परस्पर प्रतिपक्षी प्रकृतियाँ हैं । एकके बन्ध होनेपर अन्यका अबन्ध होगा । यह अबन्ध बन्धव्युच्छित्तिका द्योतक नहीं है। अबन्धके अनन्तर तो पुनः बन्ध हो भी जाता है; किन्तु जिस गुणस्थान में बन्धव्युच्छित्ति हुई है, उसमें आनेके पूर्व उस प्रकृतिका बन्ध नहीं होगा। साताकी बन्धव्युच्छित्ति जब सयोगकेवली गुणस्थान में होती है, तब साता अबन्धका अर्थ है - असाताका बन्ध । असाताकी बन्धव्युच्छित्ति प्रमत्तसंयत में होती है, उसके पूर्व असाताके अबन्धका तात्पर्य साताके बन्धका होगा । प्रमत्त संयत के आगे साताके अबन्धका भाव उसकी बन्धव्युच्छित्तिका होगा । इस कारण औदारिक मिश्रयोगकी अपेक्षा साताके अबन्धक तथा बन्धकके औदयिक भाव कहा है । कारण यहाँ साताके अबन्धकके असाताका बन्ध होगा । असाता वेदनीयकी बात दूसरी है, वहाँ असाताके बन्धकके औदयिक भाव होगा और असाताके अबन्धक अर्थात् साताके बन्धक सयोगी जिनकी अपेक्षा शायिक भाव होगा। असाताके अबन्धकके अप्रमत्त आदि गुणस्थान इस योग में नहीं होंगे, इसलिए यहाँ औदयिक भावके साथ क्षायिक भाव भी असाताके अबन्धकके साथ गया है । साताका अबन्धक इस योग में चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त ही पाया जायेगा, उसके असाताका बन्ध होगा । इससे बन्धक, अबन्धकके औदयिक भाव कहा है । स्त्रीवेद, नपुंसक वेदके बन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके बन्धक कौन भाव हैं ? औदयिक, क्षायिक वा क्षायोपशमिक हैं । इतना विशेष है कि नपुंसक वेदके अबन्धकोंके पारिणामिक भाव भी पाया जाता है । विशेष- इस योग में उपशम सम्यक्त्वका अभाव होनेसे औपशमिक भाव नहीं कहा । पुरुष वेदबन्धकोंके कौनं भाव हैं ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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