SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०८ महाबंधे सुद० विभंग. अन्भवसि० सासण० सम्मामि० मिच्छादि० असण्णि त्ति । णवरि मदि० सुद० विभंगे मिच्छ० अबंधगात्ति को भावो ? पारिणामिगो भावो । २७६. देवाणं णिरयोघं याव णवगेवजा त्ति । णवरि देवोघादो याव सोधम्मीसाणा त्ति । एइंदिय-आदाव-थावर-बंधगात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो ? ओदइगो वा उवसमिगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा पारिणामिगो वा । तप्पडिपक्खाणं बंधा-अबंधगात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । दोण्णं बंधगा त्ति मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगावधि, अभव्यसिद्धिक, सासादन, सम्यगमिथ्यात्वी, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञीमें इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान तथा विभंगावधिमें मिथ्यात्वके अबन्धकोंके कौन भाव है ? पारिणामिक भाव है। विशेषार्थ-एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचकाय, अभव्यसिद्धिक, असंज्ञी, मिथ्यादृष्टिके मिथ्यात्व गुणस्थान कहा है। अतः इनके औदयिक भाव जानना चाहिए। मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञानमें मिथ्यात्व,सासादन गुणस्थान पाये जाते हैं। उनमें मिथ्यात्व के अबन्धक सासादन गुणस्थानवाले जीवों के दर्शन मोहनीयकी अपेक्षा पारिणामिक भाव कहा गया है। सासादन गुणस्थानमें पारिणामिक भाव है, मिश्रगुणस्थानमें क्षायोपशमिक भाव कहा है । 'गोम्मटसार' जीवकाण्ड में लिखा है-"मिश्रगुणस्थाने क्षायोपशमिकभावो भवति । कुतः ? मिथ्यात्वप्रकृतेः सर्वघातिस्पर्धकानामुदयाभावलक्षणे क्षये सम्यगमिथ्यात्वप्रकृत्युदये विद्यमाने सत्यनुयप्राप्तनिषेकाणामुपशमे च समुद्भूतत्वादेव कारणात्" (संस्कृत टीका, पृ० ३४ )-मिश्रगुणस्थानमें क्षायोपशमिक भाव किस प्रकार होता है ? मिथ्यात्व प्रकृतिके सर्वघाति-स्पर्धकोंका उदयाभाव लक्षण क्षय होनेपर तथा सम्यग मिथ्यात्व प्रकृतिके उदय होनेपर और उदयको प्राप्त न हुए तिर्यंचोंके उपशम होनेपर यह क्षायोपशमिक भाव होता है । आचार्य वीरसेन धवलाटीकामें इस परिभाषासे असहमति प्रकट करते हुए कहते हैं"तण्ण घडदे" यह परिभाषा घटित नहीं होती है। उनका कथन है- "सम्मामिच्छत्तुदए संते सद्दहणासदहणप्पो करंचिओ जीवपरिणामो उप्पजइ । तत्थ जो सद्दहणंसो सो सम्मत्तावयवो। तं सम्मामिच्छत्तदओ ण विणासेदि त्ति सम्मामिच्छत्तं खोवसमियं (जी० भा० टीका,पृ० १९८) सम्यक्त्व-मिथ्यात्व कर्मके उदय होनेपर श्रद्धानाश्रद्धानात्मक करंचित अर्थात् शबलित ( मिश्रित ) जीव परिणाम उत्पन्न होता है, उसमें जो श्रद्धानांश है, वह सम्यक्त्वका अवयव है। उसे सम्यगमिथ्यात्व कर्मका उदय नष्ट नहीं करता है, इससे सम्यगमिथ्यात्व भाव क्षायोपशमिक है। विशेष-यहाँ 'सासादन गुणस्थानकी दृष्टिसे दर्शन मोहनीयकी अपेक्षा पारिणामिक भाव कहा गया है। २७६. देवोंमें-नव प्रैवेयकपर्यन्त देवों में नारकियोंके ओघवत् जानना चाहिए। सामान्य देवोंसे सौधर्म ईशान स्वर्ग पर्यन्त विशेष है। एकेन्द्रिय आतप स्थावरके बन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक भाव है। अबन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक, औपश मिक, क्षायिक वा क्षायोपशमिक वा पारिणमिक भाव है। इनकी प्रतिपक्षी प्रकृतियोंके बन्धकों, अबन्धकोंके १. ज्ञानानुवादेन मत्यज्ञान-श्रुताज्ञान-विभंगज्ञानेषु मिथ्यादृष्टि: सासादनसम्यग्दृष्टिश्चास्ति ॥ -स० सि०, पृ० ११ । एकेन्द्रियादिषु चतुरिन्द्रियपर्यन्तेषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम् । पृथ्वीकायादिषु वनस्पतिकायान्तेषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम् । असंज्ञिषु एकमेव मिथ्यादृष्टिस्थानम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy