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महाबंधे तिण्णि-आयु० तिण्णिगदि-चदुजादि-ओरालि० पंचसंठा० ओरालि० अंगो० छस्संघ० तिण्णि आणु० आदावुजो० अप्पसत्थवि० थावरादि०४ दूभग-दुस्सर-अणादे० णीचागोदं च । पुरिसवेदभंगो देवायु-देवगदि-पंचिंदि० वेउब्विय० समचदु० वेउवि० अंगो० देवाणु० परघादुस्सा० पसत्थवि० तस०४ सुभग-सुस्सर-आदेज-उच्चागोदं च । एवं पत्तेगेण साधारणेण वेदणीय-भंगो। णवरि चदुआयु-दोअंगोवंग. छस्संघ. दोविहा० दोसर० बंधगा-अबंधात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । णवरि छस्संघडणाणं अबंधगात्ति ओदइगादिचत्तारिभावो । संज्ञा प्राप्त हो जाती है। जिसका वर्तमानमें क्षय नहीं है, किन्तु उदय विद्यमान है उसका क्षय नामकरण अयुक्त है; इसलिए ये तीनों ही भाव उदयोपश मिकपनेको प्राप्त होते हैं। किन्तु इस बात का प्रतिपादक कोई सूत्र नहीं है । फलको देकर तथा निर्जराको प्राप्त होकर दूर हुए कम-स्कन्धोंकी 'क्षय' संज्ञा करके देशविरत गुणस्थानको क्षायोपशमिक कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा होनेपर मिथ्यादृष्टि आदि सभी भावोंके क्षायोपशमिकत्वका प्रसंग प्राप्त होगा । (ध० टी०,भावानु० पृ० २०२-२०३)
___ तीन आयु (देवायुको छोड़कर ) तीन गति, चार जाति, औदारिक शरीर, समचतुरस्रसंस्थान बिना शेष पाँच संस्थान, औदारिक अंगोपांग, छह संहनन, देवानुपूर्वी बिना तीन आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, स्थावरादिक ४, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय तथा नीच गोत्रमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेदके समान भंग है। अर्थात् बन्धकोंके औदयिक भाव हैं। अबन्धकोंके औदयिक, औपशमिक, क्षायिक तथा आयोपशमिक भाव है।
देवायु, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक अंगोपांग, देवानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, स ४, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा उच्च गोत्रके बन्धकोंमें पुरुषवेदके समान भंग हैं; अर्थात् बन्धकों अबन्धकोंमें औदयिक भाव है।
विशेष-तिर्यंच गतिमें देवायु, देवगति, आदिकी बन्ध-व्युच्छित्तिवाले गुणस्थानका अभाव है, कारण यहाँ देश संयम गुण स्थान तक ही पाये जाते हैं; अतः अबन्धकोंका यह भाव है कि इन प्रकृतियोंके स्थानमें नरकायु आदिका बन्ध होता है; अतः देवायु आदिकी अबन्ध स्थितिमें नरकायु आदिके बन्धकी अपेक्षा अंबन्धकोंमें औदयिक भाव कहा है।
इस प्रकार प्रत्येक तथा साधारणसे वेदनीयके समान भंग है अर्थात् बन्धकोंके औदयिक भाव हैं; अबन्धक नहीं है । विशेष यह है कि चार आयु, दो अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वरके बन्धकों,अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक भाव हैं। विशेष छह संहननके अबन्धकों में औदायिक आदि चार भाव ( पारिणामिकको छोड़कर ) हैं।
___ विशेष-शंका - दो अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वर, चार आयुके बन्धकोंके औदायिक भाव ठीक हैं, इनके अबन्धकोंमें औदयिक कैसे कहा ? दूसरी बात यह है कि जब छह संहननके अबन्धकोंमें औदायिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक तथा क्षायिक भाव कहे गये, तब यहाँ भी विहायोगति आदिके अबन्धकोंमें केवल औदायिक भाव क्यों कहा ?
समाधान-तिर्यंच गतिमें छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वर तथा दो अंगोपांगके अबन्धक एकेन्द्रियत्वके साथ हैं, कारण एकेन्द्रियमें संहनन, विहायोगति, स्वर तथा अंगोपांग
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