SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०५ पयडिबंधाहियारो २७२. तिरिक्खेसु-दु(धु)विगाणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा णस्थि । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-अणंताणुबं०४ बंधगात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा त्ति को भावो ? उवसमिगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा। णवरि मिच्छत्त-अबंधगा पारिणामिगो भावो । वेदणी० णिस्यभंगो । एवं चदुणोकसा० । थिरादितिण्णियुग० तिण्णिवेदं णिरयभंगो। अपच्चक्खाणा०४ बंधगात्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगा ति को भावो ? खयोवसमिगो भावो। इत्थि-णqसभंगो न पाइए बिना ही उदय दीये निर्जरै सोई क्षय अर जे उदय न प्राप्त भए आगामी निषेक तिनिका सत्तास्वरूप उपशम तिनि दोऊनि कौं होते दायोपशम हो है" (गो० जी०,पृ. ३७) इस प्रकार क्षयोपशमके विषयमें दो प्रकारसे निरूपण किया गया है। २७२. तिर्यचोंमें-ध्रव प्रकृतियोंके बन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक भाव हैं। अबन्धक नहीं है। विशेष—इनके अबन्धक उपशान्त कषायादि गुणस्थानवाले होंगे। तिर्यंचोंमें केवल आदिके पाँच गुणस्थान होते हैं। इस कारण तिर्यंचोंमें ध्रुव प्रकृतियों के अबन्धकों का अभाव कहा है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चारके बन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक हैं। अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औपशमिक, क्षायिक वा क्षायोपशमिक हैं। इतना विशेष है कि मिथ्यात्वके अबन्धकोंके पारिणामिक भाव भी पाया जाता है । वेदनीयका नरक गति के समान भंग है, अर्थात् साता-असाताके बन्धक, अबन्धकोंमें औदयिक भाव हैं। दोनों के बन्धकोंमें औदायिक भाव है; अबन्धक नहीं हैं। चार नोकषायमें इसी प्रकार है। स्थिरादि तीन युगल, तीन वेदके बन्धको अबन्धकोंमें नरक्रगतिके समान भंग है । अप्रत्याख्यानावरण चारके बन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक हैं। अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? क्षायोपशमिक भाव हैं। विशेष-यहाँ देशसंयमी तिथंचोंकी अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव कहा है । इस सम्बन्धमें धवलाकार इस प्रकार स्पष्टीकरण करते हैं - क्षयोपशमरूप संयमासंयम परिणाम चारित्र मोहनीयके उदय होनेपर उत्पन्न होते हैं। यहाँ प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन और नोकषायोंके उदय होते हुए भी पूर्णतया चारित्रका विनाश नहीं होता। इस कारण प्रत्याख्यानादिके उदयकी क्षय संज्ञा की गयी है। उन्हीं प्रकृतियोंकी उपशम संज्ञा भी है, कारण वे चारित्र अथवा श्रेणीको आवरण नहीं करती । इस प्रकार क्षय और उपशमसे उत्पन्न हुए भावको क्षायोपशमिक भाव कहा है। .. कोई आचार्य कहते हैं - अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदय-क्षयसे उन्हीके सदवस्थारूप उपशमसे तथा चारों संज्वलन और नव नोकषायोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षय, उनके सदवस्थारूप उपशम तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे और प्रत्याख्यानावरण चारके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयसे देशसंयम होता है। - इस सम्बन्धमें धवलाकारका यह कथन है कि - उदयके अभावकी उपशम संज्ञा करनेसे उदयसे विरहित सर्व प्रकृतियोंकी तथा उन्हींके स्थिति, अनुभागके स्पर्ध कोंको उपशम १. "देशविरदे पमत्ते इदरे य खओवसमियभावो दु ।" - गो० जीव० गा०१३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy