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पयडिबंधाहियारो ओदइगो वा खइगो वा [ असाद-बंधगात्ति को भावो ? ] ओदइ० । [अबंधगात्ति को भावो ? ओदहगोवा ] खइगो वा खयोवसमिगो वा । दोण्णं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो? खइगो भावो। इत्थि० णवंस० बंधगात्ति को भावो ? ओदहगो भावो । अबंधगात्ति को भावो । ओदइगो वा उवसमिगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा। णवरि णवूस० पारिणामिगो भावो । पुरिसवे० बंधगात्ति ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो ? ओदइगो वा उपसमिगो वा खइगो वा । . सातावेदनीयके बन्धकों में कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंमें कौन भाव है ? औदयिक या क्षायिक है।
विशेष-सातावेदनीयको बन्धव्युच्छित्तिवाले अयोगकेवली गुणस्थानमें क्षायिकभाव है, किन्तु असाताके बन्धक किन्नु साताके अबन्धकके औदायिक भाव है; कारण साता और असाताके परस्पर प्रतिपक्षी होनेसे असाताके बन्धकाल में साताका अबन्ध होगा। इस दृष्टिसे औदयिक भावका निरूपण किया है ।
[असाता वेदनीयके बन्धकोंके कौन-सा भाव है ? ] औदायिक है। [ अबन्धकोंके कौनसा भाव है ? औदयिक ] या क्षायिक या क्षायोपशमिक है।'
विशेष-असाताको बन्धव्युच्छित्ति प्रमत्तसंयतमें होती है, अतएव अप्रमत्त गुणस्थानकी अपेक्षा भायोपशमिक भाव कहा है। . दोनों के बन्धकोंमें कौन-सा भाव है ? औदायिक भाव है। अबन्धकों में कौन-सा भाव है ? क्षायिकभाव है।।
विशेष--यहाँ दोनोंके अबन्धक अयोगकेवलीकी अपेक्षा क्षायिकभाव कहा है। ___ स्त्रीवेद, नपुंसकवेदके बन्धकोंमें कौन-सा भाव है ? औदायिक भाव है । अबन्धकोंमें कौन-सा भाव है ? औदयिक, औपशमिक, क्षायिक या क्षायोपशमिक है। इतना विशेष है कि नपुंसकवेदके अबन्धकोंमें पारिणामिक भाव भी पाया जाता है ।
विशेष-यहाँ स्त्रीवेद, नपुंसकवेदके अबन्धकोंमें औदयिक भावका निरूपण पुरुषवेदके बन्धककी अपेक्षासे किया है। नपुंसकवेदके अबन्धक सासादन गुणस्थानमें होते हैं । वहाँ दर्शनमोहनीयके उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशमका अभाव होनेसे पारिणामिक भाव कहा है।
पुरुषवेदके बन्धकोंमें कौन-सा भाव है ? औदयिक भाव है। अबन्धकों में कौन-सा भाव है ? औदयिक, औपशमिक वा क्षायिक है ।।
विशेष-पुरुषवेदके अबन्धक अनिवृत्तिकरणके अवेद भागमें होंगे। वहाँ चारित्र मोहनीयके उपशम अथवा क्षयमें तत्पर जीवोंकी अपेक्षा औपशमिक तथा क्षायिक भाव है। पुरुषवेद के अबन्धक किन्तु स्त्री-नपुंसकवेदके बन्धककी अपेक्षा औदायिक भाव होगा।
१. देसविरदे पमत्ते इदरे य खओवसमियभावो दु ।
सो खलु चरित्तमोहं पडुच्च भणियं तहा उवरिं ॥ १३ ॥ तत्तो उवरि उवसमभावो उवसामगेसु खवगेसु । खइओ भावो णियमा अजोगिचरमोत्ति सिद्धे य ॥ १४ ॥
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