________________
३००
महाबंधे
तिण्णं वेदाणं बंधगात्ति को भायो ? ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो १ खइगो वा उवसमिगो वा । इत्थि णबुंसकभंगो [अरदिसोग] चदु-आयु-तिण्णिगदि-चदुजादिओरालि० पंचसंठा० ओरालि० अंगो० छस्संघ० तिण्णि आणु० आदावुज्जो० अप्पसत्थवि. थावरादि०४ अप्पसत्थवि० ( अथिरादिछक्क ) उच्चागोदं ( णीचागोदं ) च । पुरिसभंगो हस्सरदि-देवगदि-पंचिंदि० वेउवि० आहार० समचदु० दोआंगो० देवाणु० परघादुस्सा० पसत्थविहाय० तस०४ थिरादि-छक्कं तित्थयरं (उच्चागोदं च । पत्तेगेण साधारणेण चदुआयु-दो-अंगो० छस्संघ०२ विहाय दोसराणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो। अबंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो वा उपसमिगो वा खइगो वा । णवरि चदुआयु० छस्संघ. अबंधगात्ति को भावो ? ओदइगो वा उवसमिगो वा खइगो वा खयोवसमिगो वा । दो युगल-चदुगदि-पंचजादि-दोसरीर०छस्संठा. चदुआणु० तसथावरादिणवयुगलं दोगोदं च बंधगाति को भावो १ ओदइगो भावो । अबंधगात्ति को भावो ? उपसमिगो वा खइगो वा । एवं ओघभंगो मणुसगदि (१) तिगं
तीनों वेदोंके बन्धकोंमें कौन-सा भाव है ? औदयिक है। अबन्धकों के कौन-सा भाव है ? क्षायिक या औपशमिक है।
_ विशेष-वेदत्रयके अबन्धकके अनिवृत्तिकरणके अवेद भागमें क्षायिक तथा औपशमिक भाव कहे हैं।
- [अरति शोक ] ४ आयु, देवगतिको छोड़कर तीन गति, ४ जाति, औदारिक शरीर, समचतुरस्र संस्थानको छोड़कर शेष पाँच संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, देवानुपूर्व के विना तीन आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, स्थावरादि४, अप्रशस्त विहायोगति (?) तथा उच्च गोत्रके(?) बन्धकोंमें स्त्रीवेद और नपुंसक वेदके बन्धकोंके समान भाव जानना चाहिए अर्थात् बन्धकोंके औदायिक भाव हैं तथा अबन्धकोंके औदायिक, औपशमिक, क्षायिक वा मायोपशमिक है।
विशेष-यहाँ अप्रशस्त विहायोगतिका दो बार उल्लेख आया है। प्रतीत होता है, अस्थिरादिषट्क के स्थान में अप्रशस्तविहायोगतिका पुनः उल्लेख हो गया है। यहाँ उच्चगोत्रके स्थानमें नीचगोत्रका पाठ उचित प्रतीत होता है।
___ हास्य, रति, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियिक शरीर, आहारक शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक तथा आहारक-अंगोपांग, देवानुपूर्वी, परघात, उछ्वास, प्रशस्त विहायोगति, स ४, स्थिरादि ६, तीर्थंकर प्रकृति, [ उच्च गोत्र ] के बन्धकोंमें पुरुषवेदके समान भंग है अर्थात् बन्धकोंमें औदायिक भाव है, अबन्धकोंमें औदायिक, क्षायिक वाक्षायोपशमिक है । प्रत्येक तथा सामान्यसे ४ आयु, २ अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरों के बन्धकोंमें कौन भाव है ? औदयिक है। अबन्धकोंके कौन भाव हैं ? औदयिक, औपशमिक तथा क्षायिक भाव हैं। विशेष, ४ आयु, ६ संहननके अबन्धकोंमें कौन भाव हैं ? औदयिक, औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक भाव हैं। हास्य रति युगल, ४ गति, ५ जाति, औदारिक, वैक्रियिक शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, बसस्थावरादि ९ युगल और दो गोत्रोंके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदायिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औपशमिक या क्षायिक भाव है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org