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महाबंधे
२६६ पुधत्तं । अबंधगा जह० एगस० । उक्कस्सेण सत्तरादिंदियाणि ।
२६७. सासणे-सव्वे विगप्पा जहण्णण एगस० । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । एवं सम्मामि० ।
२६८. अणाहारे–धुविगाणं बंधा-अबंधगा णत्थि अंतरं । एवं सेसाणं । णवरि देवगदि०४ बंधगा जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण मासपुधत्त अंतरं । तित्थयरं बंधगा जहण्गेण एगसमओ । उक्कसण वासपुधत्तं अंतरं । अबंधगा णस्थि ।
एवं अंतरं समत्तं ।
बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे वर्षपृथक्त्व है। अबन्ध कोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे ७ दिनरात है।
२६७. 'सासादनमें सर्व विकल्प जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं । इसी प्रकार सम्यमिथ्यात्वमें जानना ।
२६८. अनाहारकोंमें-ध्रुवप्रकृतियोंके बन्धकों, अबन्धकोंका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार शेष प्रकृतियोंमें भी जानना चाहिए। विशेष, देवगति चार के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे मासपृथक्त्व अन्तर है। तीर्थकर प्रकृति के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे वर्षपृथक्त्व अन्तर है ; अबन्धक नहीं हैं।
इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ।
१. “सासणसम्मादिट्ठी- सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?. णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।" -३७५, ७६ । २. आहाराणुवादेण आहार-अणाहाराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णत्थि अंतरं, णिरंतरं । -खु० ०,सू० ६६-६८ , पृ. ४६४
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