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पयडिबंधाहियारो
२९५ आदेज्ज-णिमिण-उच्चागोदं पंचंतराइगाणं बंधगा जहण्णेण एगस० उक्कस्सेण सत्तरादिदियाणि । [अबंधगा] जहण्णेण एगस०, उक्कस्सेण वासपुधत्तं । णवरि वज्जरिस० अबंधगा सत्तरादिंदियाणि । मणुसगदि०४ वारिसभ-भंगो। दोवेदणी० बंधा-अबंधगा जहण्णेण एगस० । उक्कस्सेण सत्तरादिदियाणि । दोण्णं बंधगा जहण्णे० एगस० । उक्कस्सेण सत्तरादिदियाणि । अबंधगा णत्थि । चदुणोक. बंधा-बंधगा जहण्णेण एगस० । उक्कस्सेण सत्तरादिंदियाणि । दोणं युगलाणं बंधगा जहण्णेण एगस० । उक्कस्सेण सत्तरादिदियाणि । अबंधगा जहण्णेण एगस० । उक्क. वासपुधत्तं । एवं परियत्ति [माणि] याणं । अपच्चक्खाणावरण०४ बंधगा जहण्णण एगस० । उक्क० सत्तरादिदियाणि । अबंधगा जह० एगस० । उक्क० चोइसरादिदियाणि। पच्चक्खाणावरण०४ बंधगा जह० एगस० । उक्क० सत्तरादिदि० । अबंधगा जह० एगस० । ' उक्क० पण्णारसरादिदि० । आहारदुगं तित्थयरं बंधगा जह० एगस० । उक्क० वासअगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र तथा ५ अन्तरायों के बन्धकोंका अन्तर जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे सात रात-दिन है। . विशेषार्थ-रात्रिंदिव शब्द द्वारा दिवसका ग्रहण किया गया है, क्योंकि सम्मिलित दिन तथा रात्रिमें दिवसका व्यवहार देखा जाता है । (खु० बं० टीका पृ० ४६२)
[अबन्धकोंका ] जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे वर्षपृथक्त्व अन्तर है।
विशेष-इन प्रकृतियोंके अबन्धक उपशान्तकषायी होंगे, उनका जघन्य अन्तर एक समय, उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व है।
विशेष यह है कि वनवृषभनाराचके अबन्धकोंका अन्तर सात दिन-रात है। मनुष्यगति ४ के बन्धकोंका अन्तर वज्र वृषभनाराचसंहननके समान है। दो वेदनीयके बन्धकों, अबन्धकोंका अन्तर जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे सात दिन-रात है। साता-असाताके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे सात दिन-रात है। अबन्धक नहीं है । चार नोकषायों अर्थात् हास्यादिचतुष्कके बन्धकों, अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे ७ दिन-रात अन्तर है। दोनों युगलोंके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे ७ दिन-रात अन्तर है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ठसे वर्षपृथक्त्व है। परिवर्तमान प्रकृतियोंमें इसी प्रकार भंग जानना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे सात दिनरात अन्तर है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे १४ दिन-रात है । प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे ७ दिनरात अन्तर है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे १५ दिनरात है। आहारकंद्विक तथा तीर्थकरके
१. "उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं उक्कस्सेण सत्तरादिदियाणि ।" -षट्खं०, अं० सू० ३५६, ३५७ । रादिदियमिदि दिवसस्स सण्णा । अहोरत्तेहि मिलिएहि दिवसववहारदसणादो। एत्थ उवसंहारगाहा - सम्मत्ते सत्त दिणा विरदाविरदीए चोद्दस हवंति । विरदीसु अ पण्णरसा विरहिदकालो मुणेयब्वो ॥ -खु० बं०टी० पृ० ४६२ । २. "संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पड़च्च जहणेण एगसमयं उक्कस्सेण चोद्दसरादिदियाणि ।" -षट्खं० अं० सू० ३६०, ३६१ । ३. “पमत्तअप्पमत्तसं जदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं उक्कस्सेण पण्णारसरादि दियाणि ।" -३६४, ६५ |
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