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________________ महाबंधे २८६ समओ। उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । अबंधगा णधि । एवं सव्वाणं । दोआयु० बंधाबंधगा जहण्णण अंतोमुहुत्तं, उक० पलिदो० असंखेजदिमागो। मणुसायुबं० देवभंगो। अबंधगा जह. एगस० उक० पलिदो० असंखेजदिमागो। एवं साधारणेण वि। २४१. सम्मामि० धुविगाणं बंधगा जहण्णेण अंतोमुहुतं, उक्क० पलिदो. असंखेजदिभागो। अंबंधगा णत्थि । सादासादाणं बंधगा. जह० एगसमओ, उक. पलिदो० असंखेजदिभागो । दोण्णं बंधगा जहण्णण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । अबंधगा णत्थि । एवं परियत्तमाणियाणं सव्वाणं । मणुसगदिपंचगं देवगदि०४ बंधाबंधगा जहण्णेण अंतोमुहुतं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिमागो। एवं साधारण वि । अबंधगा णस्थि । २४२. अणाहारे धुविगाणं बंधगा- अबंधगा सम्बद्धा । देवगदिपंचगं बंधगा जहण्णेण एगसमओ । उक्कस्सेण संखेज्जा समया। अबंधगा सव्वद्धा । सेसाणं बंधाबंधगा सव्वद्धा। एवं कालं समत्त । भाग है; अबन्धक नहीं है । शेष प्रकृतियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए । दो आयुके बन्धकों, अबन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है, उत्कृष्ट से पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। मनुष्यायुके बन्धकोंमें देवोंके समान भंग है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। इसी प्रकार सामान्यसे भी जानना चाहिए। २४१. सम्यक्त्वमिथ्यात्वमें-'ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है; अबन्धक नहीं है। साता-असाताकेब जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। दोनोंके बन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है , उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है, अबन्धक नहीं है। परिवर्तमान सर्वप्रकृतियोंमें इस प्रकार जानना चाहिए । मनुष्यगतिपंचक, देवगति ४ के बन्धकों,अबन्धकों का जघन्यसे अन्तमुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। इस प्रकार सामान्यसे भी भंग जानना चाहिए; अबन्धक नहीं है। ___ २४२. अनाहारकोंमें-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वकाल है। देवगतिपंचकके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे संख्यात समय है। अबन्धकोंका सर्वकाल है। शेष प्रकृतियोंके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वकाल है। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा कालप्ररूपणा समाप्त हुई। १. "सम्मामिच्छादिट्ठी केवचिरं कालदो होति ? गाणाजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहत्त, उपकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।" -६-१० । २. "आहारा अणाहारा केवचिरं कालादो होंति ? सम्वा" -खु० ब०,सू०५४, ५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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