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________________ पयडिबंधाहियारो २८५ अपचक्खाणा०४ बंधगा- अबंधगा जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। पचखाणा०४ बंधगा जहयोण अंतोमुहुत्तं, उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेअदिभागो। अबंधगा जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सादासाद-बंधगा-अबंधगा जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। दोणं वेदणीयाणं बंधगा जहण्णेण . अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेनदिभागो। अबंधगा णस्थि । मणुसगदि-पंचगं बंधगा-अबंधगा जहण्णेण अंतीमुहुत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्म असंखेअदिमागो। देवयदि०४ बंधमा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिमागो। एवं अबंधा। गवरि जहण्णेण अंतोमुहुतं । आहारदुगं बंधगा जहण्णण एगसमओ, उकस्सेण अंतोमु हुत्तं। अबंधगा। जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। एवं तित्थयरस्स । चदुणोकसायाणं बंधगा-अबंधगा जहण्णण एगसमओ । उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेअदिभागो। दोणं युगलाणं बंधगा जहण्णण अंतोमुहुतं । उकस्सेण पलिदोवमास्स असंखेजदिभागो। अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उकस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवं थिरादितिष्णियुगलाणं । सासणेधुविगाणं बंधगा जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखेजदिभागो। अबंधगा णस्थि । एवं वेदणीयं पत्तेगेण बंधगा- अबंधगा। “साधारणेण बंधगा- अबंधगा जहण्णण एग अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकों अबन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग है। प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकोंका जघन्यसे अन्तमुहूत, उत्कृष्टसे पल्यापमका असख्यातवां भाग है। अबन्धकांका जघन्य तथा उत्कृष्टसे अन्तमुहूते है । साताअसाताके.बन्धकों, अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग जानना चाहिए। दोनों वेदनीयों के बन्धकोंका जघन्यसे अन्नमुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है ; अबन्धक नहीं है। मनुष्यगतिपंचकके बन्धकों,अबन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । देवगति ४ के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। इसी प्रकार अबन्धकोंका जानना चाहिए । इतना विशेष है कि यहाँ जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। आहारकद्विकके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है। अबन्धकोंका जघन्यसे अन्नमुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। तीर्थकरका इसी प्रकार जानना चाहिए। चार नोकषायोंके बन्धकों, अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। दोनों युगलोंके बन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है। स्थिरादि तीन युगलोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। सासादममें-'ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है ; अबन्धक नहीं है । वेदनीयके बन्धकों, अबन्धकोंमें प्रत्येकसे इसी प्रकार है । सामान्यसे बन्धको अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय है, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ १. 'सासणसम्माविट्ठी फेवचिरं कालादो होति ? भाणाजीवं पडुच्च जहष्णेण एगसमओ उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।"-षट् खं०,का०,५-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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