________________
२८२
महाबंधे तिण्णि-वेद-जस०-अजस० दोगोदं च । हस्सरदि-अरदि-सोगं बंधगा अबंधगा सव्वद्धा । दोणं युगलाणं बंधगा सम्बद्धा। अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुडुत्तं । सेसाणं पत्तेगेण साधारणेण वि हस्सरदीणं भंगो। चदुआयुगाणं बंधगा पत्तेगेण जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। अबंधगा सव्वद्धा । साधारणेण चदुआयुगाणं बंधगा जहणणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। अबंधगा सबद्धा । एवं पुरिसवेदस्स वि। एवं चेव णqसगवेद-कोधादितिण्णं कसायाणं । णवरि तिरिक्खायुबंधगा अबंधगा सम्बद्धा। साधारणेण चदुआयुगाणं अबंधगा सबद्धा । एवं चेव लोभे वि । णवरि पंचणा० चदुदं० पंचंतराइगाणं बंधगा सव्वद्धा । अबंधगा णथि । अवगदवेदेसु-सादस्स बंधाबंधगा सव्वद्धा । सेसाणं बंधगा जहण्णेण एगसमओ, उकस्सेण अंतोमुहुत्तं । अबंधगा सव्वद्धा । अकसाइगेसु-सादस्स बंधगा अबंधगा सव्वद्धा । एवं केवलणा० केवलदंस०।।
- २३३. विभंगे पंचिंदिय-तिरिक्ख-भंगो। णवरि मिच्छत्त-अबंधगा जहण्णेण एगअबन्धकोंका सर्वकाल है। दोनोंके बन्धकोंका सर्वकाल है । अबन्धक नहीं है। तीन वेद, यश कीर्ति, अयश कीर्ति तथा दो गोत्रों में इसी प्रकार जानना चाहिए। हास्य-रति, अरतिशोकके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वकाल है । दोनों युगलोंके बन्धकोंका सर्वकाल है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है। शेष प्रकृतियोंमें प्रत्येक तथा सामान्यसे हास्य रतिके समान भंग जानना चाहिए । चार आयुके बन्धकोंका प्रत्येकसे जघन्यकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त काल है, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । अबन्धकोंका सर्वकाल है। सामान्यसे चार आयुके बन्धकोंका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट से पल्यका असंख्यातवाँ भाग है । अबन्धकोंका सर्वकाल है।
पुरुषवेदमें-इसी प्रकार जानना चाहिए। नपुंसकवेदमें भी इसी प्रकार है। क्रोध-मानमायाकषायमें भी इसी प्रकार है । विशेष यह है कि तियच आयुके बन्धकों अबन्धकोंका सर्वकाल है । सामान्यसे चार आयुके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वकाल है। लोभकषायमें-इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष यह है कि ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण तथा ५ अन्तरायोंके बन्धकोंका सर्वकाल है ; अबन्धक नहीं है।
अपगत वेदमें -सातावेदनीयके बन्धकों अबन्धकोंका सर्वकाल है। शेष प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । अबन्धकोंका सर्वकाल है।
अकषायियोंमें-साता वेदनीयके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वकाल है। केवलज्ञान, केवलदर्शनमें इसी प्रकार जानना चाहिए।
२३३. विभंगज्ञानमें -पंचेन्द्रिय तियंचके समान भंग जानना चाहिए । विशेष यह है
१. "कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई अकसाई केवचिरं कालादो होति ? सम्वद्धा"-खु०बं०.सू.२८, २९ । २. "णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणो आभिणिवोहियसुद-ओहिणाणीमणपज्जवणाणी केवलणाणी केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा" -खु० बं० सू० ३१, ३२ । ३. "विभंगणाणीसू मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति? जाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा।"-पट खं० का०२६२। "सासणसम्मादिट्टी ओघ (२६५) णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्ज. दिभागो।" ५.६।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org