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________________ २८१ पयडिबंधाहियारो दोविहायगदि-दोसराणं बंधगा अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेअदिभागो । तित्थयरं बंधगा जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अबंधगा जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। आहारका०-धुविगाणं बंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । अबंधगा णस्थि । सेसाणं बंधगा अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आहारमि०-धुविगाणं बंधगा जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । अबंधगा णस्थि । वेदणीय-बंधगा-अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्करसेण अंतोमुहुत्तं । दोण्णं बंधगा जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । अबंधगा गत्थि । आयु० तित्थय० सादभंगो। २३२. इस्थिवे०-पं. 'गा० चदुदंस० चदुसंज. पंचंत० बंधगा सव्वद्धा । अबंधगा णत्थि । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-बारसक० आहारदुग-परघादुस्सास-आदा-उजोव-तित्थयराणं बंधगा अबंधगा सव्वद्धा। णिद्दापचल( ला )-भयदु. तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० बंधगा सव्वद्धा। अबंधगा जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सादासाद-बंधगा अबंधगा सव्वद्धा । दोणं बंधगा सव्वद्धा । अबंधगा णस्थि । एवं तथा दो स्वरोंके बन्धकों-अबन्धकोंका काल जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । तीर्थकर के बन्धकोंका जघन्य तथा उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । अबन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपसका असंख्यातवाँ भाग है। आहारककाययोगियोंमें ध्रुव प्रकृतियों के बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । अवन्धक नहीं है। शेष प्रकृतियों के बन्धकों,अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है। __ आहारकमिश्रमें-ध्रुव प्रकृतियों के बन्धकोंका जघन्य तथा उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है। अबन्धक नहीं है। वेदनीयके बन्धकों अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है। दोनों के बन्धकोंका जघन्य तथा उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है। अबन्धक नहीं है। आयु तथा तीर्थकर में साताके समान भंग है। .. २३२. स्त्रीवेदमें -५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, ५ अन्तरायके बन्धकोंका सर्वकाल है। अबन्धक नहीं है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, १२ कषाय, आहारकद्विक, परधात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत तथा तीर्थकरके बन्धकों अबन्धकोंका सर्वकाल है। निद्रा-प्रचला, भय-जुगुप्सा, तैजस कार्मण , वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणके बन्धकोंका सर्वकाल है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । साता असाता वेदनीयके बन्धकों १. "आहारकायजोगीसु पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं, उक्कस्सेशं अंतोमुत्तं ।" -षट्खं० का०२०९-२१० । २. "आहारमिस्सकायजोगीसु पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं।" -षट्खं० का०२१३-१४। ३. "इत्थिवेदेसु मिच्छादिट्टी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा।" -षट्खं० का०२२७ । "वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा णवंसयवेदा अवगदवेदा केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा।" - २७, २८ ख० बं०। ४. "असंजदसम्मादिदो केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सन्त्रद्धा।" -षटूखं० का०२३२ । ५. "चदुण्णं उवसमा केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।" -षट्खं०का०२२-२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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