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________________ २७६ महाबंधे २२१. एवं पंचिंदिय-तिरिक्ख-पअत्तजोणिणीसु । पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपज०-दो आयुबंधगा जहण्णेण अंतोमुहत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिमागो। अबंधगा सव्वद्धा । एवं सम्वविगलिंदिय-पंचिंदिय-तस० अपजत्त-बादर-पुढवि० आउ० तेउ० वाउ-बादरवणप्फदिपत्तेय-पजत्ताणं । २२२. मणुसेसु सादासादबंधगा सव्वद्धा । दोणं वेदणीयाणं बंधगा सम्बद्धा । अबंधगा जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । दोआयु. बंधगा जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। अबंधगा सव्वद्धा । दोआयु० बंधगा जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । अचंधगा सव्वद्धा। चदुआयुबंधगा जहण्णेण अंतोमुडुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । अबंधगा सव्वद्धा । सेसाणं सव्वे भंगा सव्वद्धा। २२३. एवं मणुसपजत्त-मणुसिणीसु । णवरि चदुआयु पत्तेगेण साधारणेण य बंधगा जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं । अबंधगा केवचिरं कालादो होति ? सम्बद्धा। २२१. पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तियंचपर्याप्तक, पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिमतियों में इसी प्रकार जानना चाहिए । पंचेन्द्रिय तियेचलमध्यपर्याप्तकोंमें दो आयु (नर-तियचायु) के बन्धक जघन्यसे अन्तमहत, उत्कृष्टसे पल्यके असंख्यातवें भाग होते हैं। अबन्धक सर्वकाल होते हैं। सर्वविकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय त्रस इनके अपर्याप्तकोंमें बादर-पृथ्वी-जल-अग्नि-वायुकायिक, बादर बनस्पति प्रत्येक तथा इनके पर्याप्तकोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। २२२. मनुष्योंमें-साता-असाता वेदनीयके बन्धकोंका सर्वकाल है। दोनों वेदनीयके बन्धकोंका सर्वकाल है । अबन्धकोंका जघन्य उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। विशेष-दोनों वेदनीयके अबन्धक अयोगिजिनोंकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कहा गया है। दो आयुके बन्धक जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्यके असंख्यातवें भाग होते हैं । अबन्धक सर्वकाल होते हैं । दो आयुके बन्धक जघन्य-उत्कृष्टसे अन्तमुहूर्त होते हैं ; अबन्धकोंका सर्वकाल है। चारों आयुके बन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्यके असंख्यातवें भाग होते हैं; अबंधक सर्वकाल होते हैं। शेष प्रकृतियोंके सर्वेभंग सर्वकाल जानना चाहिए। २२३. मनुष्य पर्याप्तकों, मनुष्यनियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष यह है कि चार आयुके प्रत्येक तथा सामान्यसे बन्धक जघन्य और उत्कृष्टसे अन्तमुहूर्त पर्यन्त होते हैं । अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? सर्वकाल होते हैं। १. इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरा सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता बीइंदिया ती इंदिया चरिदिया पंचिदिया । तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा । १२, १३ कायाणुवादेण पुढविकाइया आरकाझ्या तेउकाइया वाउकाइया वणप्फदिकाइया णिगोदजीवा वादरा सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता बादर वणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता तसकाइय-पज्जत्ता अपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? सम्वद्धा -१४,१५, खु० बं०। २. मणुसगदीए मणसा मणुस-पज्जत्ता मणुसिणी केवचिरं कालादो होति? सम्वद्धा (४,५)। ३. "चदुहं खवगा अजोगिकेवली केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं उक्कस्सेण अंतोमुहुत्त ।"-षटखं०,का०,२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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