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महाबंधे वेदणीय-भंगो । णवरि तिण्णिायु-बंधगा केवचिरं कालादो होंति ? जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। अबंधगा सव्वद्धा । तिरिक्खायुबंधाबंधगा केवचिरं कालादो होति ? सव्वद्धा । एवं चदुआयुगाणं । एवं
ओघभंगो काजोगीसु ओरालियकाजोगी० भवसिद्धि० आहारगत्ति । णवरि भवसिद्धिये दोवेदणीयस्स अबंधगा केव० कालादो होंति ? साधारणेण जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सेसाणं मग्गणाणं वेदणीयस्स साधारणेण अबंधगा पत्थि । णवरि काजोगिओरालियका० तिण्णं आयुगाणं जहण्णेण एगसमओ।
२१८. आदेसेण णेरइयेसु धुविगाणं बंधगा केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा । अवंधगा णस्थि । थीणगिद्धि-तियं मिच्छत्त-अणंताणु०४ उजोव-तित्थयराणं ओघं । तिरिक्खायु-बंधगा केव० कालादो होंति ? जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । अबंधगा सम्बद्धा । मणुसायु-बंधगा केव० जहण्णुकसेण अंतोमुहुत्तं । तृतीय खण्ड में पंचम सूत्रमें आगत शब्द "को बन्धो को अबन्धो ?” की टीकामें वीरसेन आचार्य कहते हैं "बंधो बंधगोत्ति भणिदं होदि।” (पृ०७)-बन्धका भाव बन्धक है।
शेष प्रकृतियोंका वेदनीयके समान भंग है। विशेष, ३ आयुके बन्धक कितने काल तक होते हैं ? जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक है । अबन्धकोंका सर्वकाल है। तियचायुके बन्धक,अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? सर्वकाल होते हैं। इसी प्रकार चार आयुका जानना चाहिए।
'काययोगी, औदारिककाययोगी, भव्यसिद्धिक तथा आहारक मार्गणामें ओघवत् जानना चाहिए । इतना विशेष है कि भव्यसिद्धिकोंमें दो वेदनीयके अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? सामान्यकी अपेक्षा जघन्य तथा उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है।
विशेष-दोनों वेदनीयके अबन्धक अयोगी जिनकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त काल कहा है।
शेष मार्गणाओं में सामान्यसे वेदनीयके अबन्धक नहीं हैं। विशेष, काययोगियों, औदारिक काययोगियोंमें तीन आयुके बन्धक कितने काल तक होते हैं ? जघन्यसे एक समय पर्यन्त होते हैं।
२१८. आदेशसे-नारकियोंमें ध्रुवप्रकृतियोंके बन्ध कितने काल तक होते हैं ? सर्वकाल होते हैं; अबन्धक नहीं हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४, उद्योत और तीर्थकरके बन्धकोंमें ओघके समान सर्वकाल जानना चाहिए। तियंचायुके बन्धक कितने काल तक होते हैं ? जघन्यसे अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ठसे पल्यके असंख्यातवें भाग होते हैं । अबन्धक सर्वकाल होते हैं । मनुष्यायुके बन्धक कितने काल तक होते हैं ? जघन्य तथा उत्कृष्ट से
१. जोगाणुवादेण...कायजोगी ओरालियकायजोगी--केवचिरं कालादो होति ? सव्वद्धा -खु० बं, सू० १६, १७ । भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया केवचिरं कालादो होति ? सव्वद्धा ( ४२, ४३ ) आहारा अणाहारा केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा (५४, ५५) । २. “चदुण्हं खवगा अजोगिकेवलो केवचिरं कालादो होति ? गाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।"-षट्खं०,का०,सू० २६ । ३. "णेर इएसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ।-षटखं०,का०.३३ ।
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