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[ कालाणुगम-परूवणा] २१६. कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण आदेसेण य ।
२१७. तत्थ ओघेण पंचणा० णवदंस० मिच्छत्त सोलसक० भयदु० तेजाक० आहारदुर्ग वण्ण०४ अगु०४ आदाउजो० णिमिण. तित्थयर-पंचंतराइगाणं बंधगा अबंधगा केवचिरं कालादो होति ? सव्वद्धा । सादासादाणं बंधा-अबंधगा० सव्वद्धा । दोण्णं बंधगा-अबंधगा केवचिरं कालादो होति ? सबद्धा । एवं सेसाणं पगदीणं
[कालानुगम] २१६. कालानुगमका ( नानाजीवोंकी अपेक्षा ) ओघ तथा आदेशसे दो प्रकार निर्देश करते हैं।
विशेषार्थ-यहाँ 'केवचिरं कालादो होति कितने काल तक रहते हैं ; इसका अर्थ 'धवला'टीकाकार इस प्रकार करते हैं-'क्या नरकगतिमें नारकी जीव अनादि अपर्यवसित हैं ?
क्या, अनादि सपर्यवसित हैं ? क्या सादि अपर्यवसित हैं ? क्या सादि सपर्यवसित हैं ?' इस .शंकाका यहाँ उद्दीपन किया गया है। इसके उत्तर में कहा है-नाना जीवोंकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकी जीव सर्वकाल रहते हैं अर्थात् नारकी जीव अनादि-अपर्यवसित हैं, शेष तीन विकल्पोंमें नहीं है । जिस प्रकार नार कियोंका सामान्यसे अनादि-अपर्यवसित संतान काल कहा है, उसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें ही नारकियोंका सन्तानकाल अनादि-अपर्यवसित है । “पादेक्कं संताणस्स वोच्छेदो ण होदि त्ति वुत्तं होदि"-इस सूत्रका यह अभिप्राय है कि प्रत्येक सन्तानका व्युच्छेद नहीं होता।
२१७. ओघसे-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय-जुगुप्सा, तैजस, कार्मण , आहारकद्विक, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, आतप, उद्योत, निर्माण, तीर्थकर, ५ अन्तरायों के बन्धक,अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? नानाजीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं। साता असाताके बन्धक अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? सर्वकाल होते हैं। दोनोंके बन्धक,अबन्धक कितने काल तक होते हैं ? सर्वकाल होते हैं ।
विशेषार्थ-यहाँ मूलमें 'आगतं बन्धा' का अर्थ बन्धक है। 'बन्धसामित्तविचय'
१. केवचिरं कालादो होति त्ति एदस्सत्थो-णिरयगदीए जेरइया किमणादि-अपज्जवसिदा, किमणादिसपज्जवसिदा, कि सादि-अपज्जवसिदा कि सादि-सपज्जवसिदा त्ति सिस्सस्स आसंकुद्दीवणमेदेण कयं । अणादि. अपज्जवसिदा होंति सेस तिसु वियप्पेसु णत्थि""जहा णेरइयाणं सामण्णेण अणादिओ अपज्जवसिदो संताणकालो वुत्तो तथा सत्तसु पुढवीसु णेरइयाणं पि। पादेक्कं संताणस्स वोच्छेदो ण होदि त्ति वुत्तं होदि । -खुद्दाबन्ध, टीका,पृ०४६२, ४६३,सूत्र १.२ २. "ओघेण मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सम्वद्धा । सम्वकालं जाणाजीवे पडुच्च मिच्छादिट्रीणं वोच्छेदो णत्थि त्ति भणिदं होदि ॥"-ध०टी०. का० पृ० ३२३ । “सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमभो, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो।" -पटूखं०,का० सू०५,६।
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